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श्री अमोलक ऋषिजी ने
शब्दार्थलोक मा० आकर्षण करता तिः ति लोक को फोः फोडता हुवा अं० आकाश तल को क. कीसी
२७ स्थान ग गर्जना करता क. कीसी स्थान वि. विजली करता क. कीसी स्थान वा० वर्षा वर्षावता
क० कीसी स्थान २० रजोवृष्टि करता क. कीनी स्थान त: अंधकार करता वा० वाणव्यंतर देवको वि० वासदेता जो० ज्योतिषी दर देवको दुदी विभाग करता आ आत्म रक्षक देवको प० पलायन कराता फ० परिघ र० रत्न अं. आकाश तक तल में वि० उछालता वि० शोभ मान ता० उम उ० उत्कृष्ट जा०
करेइ, करेइत्ता, एगेअबिइए फलिहरयणमयाए उट्ठेविहासं उप्पईए, खोभते चेव, अहेलोयं कंपेमाणेवमेयाणितलं साकढ़तेव, तिरियलोथं फोडेमाणेव अंबरतलं कत्थइ गजइ. कत्थइ विजयायंते, कत्यइ वासं वासेमाणे, कत्थई रयुग्घायं परमाणे, कत्थइ तमुक्काय पकरेमाणे, वाणमंतर देव वित्तासेमाणे २. जोइसिए देवे दहा विभयमाणे २, आयरक्खदेवे विषलायमाणे, पलायमाणे, फलिहरयण अंबरतलंमि, वियदृमाणे वियदृमाणे. विउभाएमाणे
आ. अधोलोक को प्रागतिक से ध्रजावता हा. तिछालोक का समाकर्षण से आकाश को फोडता সান্যা]
हुआ, किमी स्थान गौरव शब्द करता हुआ. किमी स्थान बिजली चमकाना, किसी स्थान वर्षा वर्षाता, किसी स्थान धुलकी वृष्टि करता, किसी स्थान घारतमकाय करता, व्यंतर देवोंको वाम उत्पन्न कर भगाता हआ, ज्योतिषी देवों का विभाग करता हुआ, उन की बीच में होकर नीकलता हुआ. परिघ रत्न
अनुवादक व रब्रह्मचांगमुनि
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी घालापमादी *