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शब्दार्थ
ला उ० उछलकर प० पछोडा पछोडकर ति त्रिपद छि० छेदकर वा बायां हाथ को ऊ. ऊंचाकर सदा दक्षिण हाथ को प० नीचाकर अं० अंगुठा के नख ति० तिर्छ म० मुख वि. विटम्बनाकर म० बडे 2 बडे स० शब्द से क. कल कल अवाज क. करके ए. एक अ. अद्वितीय फ. परिघ र. रत्नमय उ० ऊर्ध्व वि० आकाश में उ० उछालता खो क्षोर पमाडता अ० अधोलोक को कं० कंपावता मे० पृथ्वी
रहघण घणाइयं करेइ, करेइत्ता पायददरगं करेइ, करेइत्ता भूमिचवेडं दलयइ, दलयइत्ता सीहनादं नदइ, नदइत्ता उच्छोलेइ, उच्छोलेइत्ता पच्छोलेइ, पच्छोलेइत्ता तिवति छिंदइ. तिवतिं छिदइत्ता वामं भयं ऊसवेड. ऊसवेडत्ता दाहिणं हत्थपएसिणीए
अंगुट्ठनहेणय, वितिरिच्छं मुहं विडंबइ, विडंबइत्ता महया महया सणं कलकलरवं भावार्थ गर्जारव समान शब्द करता हुवा, घोडे के हेसार समान हे कार करता हुवा, हाथी की समान गुलगुलाट
करता हुवा, रथ की समान घणघणाट करता हुवा, भूमि पर पांव आस्फालता हुवा, हाथों के चपेटे भूमि पर मारता हुवा, सिंहममान नाद करता हुवा, मर्कट की तरह उछल उछल कर जाता हुवा, मल्ल की माफक
रंगभूमि में त्रिपद छेद करता हवा, बाँयी भुजा को उपर ऊंची रखता हुवा, दक्षिण भुजा के पांव की on अंगुलीयों मरोडता हुवा, मुच्छों को वल घालता हुवा, अत्यंत जोर से कल कलाट करता हुआ, मात्र
परिघ रत्न नामक आयुध को धारण करता हुआ, ऊर्ध्व आकांशमें ऊछाला खाता हुआ, क्षोभ उत्पन्न करता
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती
038 तीसरा शतक का दूसरा उद्देशा