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________________ शब्दाथ पंचगंग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र <288 आकर वे वैक्रेय समुदयात स. नीकालकर जा. यावत् उ० उत्तर वैक्रेय रूप वि. विकुर्वणा कर ता. उस उ० उत्कृष्ट जे जहां पु० पृथी शिलापट जे. जहां म० मेरी पास ते. तहां उ. आकर म000 मुझे ति तीनवक्त आ० आदान प० प्रदक्षिणा क. कर जा. यावत् न० नमस्कार कर व. बोले इच्छताएं भ. भगवन् तु तुमारी नी० नेश्राय से म० शक्र दे. देवेन्द्र को स० स्वयं अ० भ्रष्ट करने को ति० पेमा करके ॥ २७ ॥ उ० ईशान कोन को अ० अतिक्रम वे० वैक्रय समुयात म० नीकालकर उप्पायपव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता वेउब्विय समुग्घाएणं समोहणइ, समोहणइत्ता जाव उत्तर वेउवियरूवं विकुम्बइ ताए उकिट्ठाए जाव जेणेव पुढवि सिलावटए जेणेव भम अंतिए तेणेव उवागच्छइ उबागच्छइत्ता ममं तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहिणं करेइ जाव नमंसित्ता एवं बयासी इच्छामिणं भंते ! तुब्भं नीसाए सकं देविंदं देवरायं सयमेव अत्तासाइच्चए त्तिकटु ॥ २७ ॥ उत्तर पुरच्छिमंदिसी नामक उत्पात पर्वत पर आये. वहां आकर वैकेय समुद्घात यावत् उत्तर वैकेय रूप करके मेरी समीप आया. और मुझे तीन आदान प्रदाक्षणा यावत् नमस्कार करके ऐमा बोला कि अहो पूज्य ! तुमारी नेश्राय से मैं स्वयं शक्रेन्द्र की आमातना करने को इच्छता हूं ॥ २७ ॥ ऐसा कहकर ईशान कोन में गया वहां जाकर । तीसरा शतकका दूसरा उद्देशा 182 भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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