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________________ सुधर्मा ग्रहणकर सभा जे० जहां चो० नफाल प० आयुधशाला ते ए० एक अ० अद्वितीय फ० परिघ २० रत्नमय म० | राज्यधानी की म० मध्य से निः नीकलकर जे० जहां ति शब्दार्थ भगवन्तमः महावीर की नी० नेश्राय से स शक्र दे० देवेन्द्र को म० स्वयं अ० भ्रष्ट करने को ति० ऐसा करके सं० विचारकर स० शैय्या से अ० उटकर दे० देवदृष्य प० पहिनकर जे० जहां स० तहां उ० आकर फ० परिव २० रत्न १० वडा अ० अमर्श व धरता च चमर चंचा रा० तिमिच्छ कूट उ० उत्पात प० पर्वत ते० तहां नीसाए सकं देविंद देवरायं सयमेव अच्चासाइत्तए तिकट्टु एवं संपेहेइ, संपेहेइत्ता, साणिजाओ अभुट्ठेइ २ त्ता, देवदूतं परिहेइ, परिहेइत्ता जेणेव सभा सुहम्मा, जेव चाप्पाले पहरणकोसे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छइत्ता फलिहरयणं परामुसइ, परामुसइत्ता एगे अबीए फलिहरयणमयाए महया अमरिसं वहनाणे चमरतंचाए रायहाणीए मज्झ मज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छइत्ता, जेणेव तिगिच्छकूडे श्री श्रमण भगवंत महावीर की नेश्राय लेकर शक्र देवेन्द्र की आसातना करना मुझे श्रेय है ऐसा विचार कर अपने आसन से उठकर देव दृष्य वस्त्र पहिना और चउफाल नामक शस्त्र का भंडार था वहां आया. वहां आकर परिघ रत्न नामक आयुध को हस्त में धारन किया. परिघ रत्न को धारन करके अन्य किसी को साथ नहीं लेते हुवे अमर्षभाव धारण करके चमर चंचा राज्यधानी की बीच में होकर तिगिच्छकूट भावार्थ oo 88 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी * प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * ४८८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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