SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 517
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ सूत्र भावार्थ ॐॐॐ पंचमांग हिवात्र पण्णाति ( भगवती ) मृत्र ।। २५ ।। तः तब से वह च० चमर अः असुरेंद्र ओ = अवधिज्ञान को प० प्रयुंजकर म० मुझे आ देखकर ए इसरूप अत्यध्वनाय जाव्यात सश्रमण भगवन्त म० महावीर जं० जंबूदीप में भ० भरत क्षेत्र में संवारनगर में अ अशोक वनखंड उ० उद्यान में अ (अशोक वृक्ष की अ० नीचे पुत्र पृथ्वी शिलापटप ग्रहणकर ए० एक रात्रिकी म० महाप्रतिमा उ० अंगीकार कर वि० विचरते हैं । २६ ॥ तंव से श्रेय मे० मुझे स० श्रमण भ० तणं से चमरे अतुरिंद अतुरता ओहिं परंजइ, परंजइत्ता ममं ओहिणा आभोएइ आभोत्ता इमेयास्त्रे अम्भस्थिए जाव समुप्पजित्था एवंखलु समणे भगव महावीरे जंबूदीचे दीवे भारहेवासे सुंसुमारपुरे नगरे असोगवणसंडे उज्जाणे, असोगवरपास अहे पुढवि सिला पट्टयंसि, अट्टमभत्तं पगिव्हित्ता, एगराइयं महापडिमं उवसंपजित्ताणं विहरइ ॥ २६ ॥ तं सेयं खलु मे समणं भगवं महावीरं ऊष्ण हुवा || २५ | उस समय में चमरेन्द्रने अवधि ज्ञान प्रयुंजा और मुझे देखा. मुझे देखकर ऐसा अव्यवसाय यावत् चिन्तवन उत्पन्न हुवा कि श्री श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में सुंसुमारपुर नामक नगर के अशोक वन खंड उद्यान में अशोक वृक्ष की नीचे पृथ्वीशीला पटपर अठम भक्त का प्रत्याख्यान कर एक रात्रि की महा प्रतिमा अंगीकार करते हुवे विचरते हैं ॥ २६ ॥ इस से 4234 तीसरा शतकका दूसरा उदेशा '४८७
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy