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शब्दार्थ
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिली
यह अय. सा. सुनकर नि अवधार कर आमासुरव ह संष्ट कु कुपित विशेष कुपित मि० देदीचा । रमान ते डन सा० सामानिकद देवको एक ऐसे 40 बोले अं अन्य सेवा स० शक्र दे०. देवेन्द्र ।
अन्य से वह च. चमर अ० असुरेंद्र अ० असुर राजा म. महर्दिक से वह स० शक्र दे० देवेन्द्र अल्पऋद्धि वाला से० बईच० चमर अ० असुरेन्द्र तं उस इ० इच्छता दे० देवानुपिय सं० शक
देवेन्द्र को स० स्वयं अ. भष्ट करने को ति० ऐसा करके उ० अत्यंत कुपित जा हुवा हो. था ____ एयमटुं सोचा निसम्म आसुरुत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे ते सामाणियः ।।
परिसोववण्णए देवे एवं वयासी अण्णे खलु भो! से सक्के देविंदे देवराया अनेखलु भो! है से चमरे असुरिंदे असुरराया, महिढीए खलु भो ! से सक्के देविद देवराया, अप्पिट्ठिए ।
खलुभो ! से चमरे असुरिंदे असुरराया. तं इच्छामिणं देवाणुप्पिया ! सकं देविदे. है देवरायं सयमेव अच्चासाहित्तए त्तिकटु, उसिणे उसिणभूए, जाएयावि होत्था ॥२५॥ पास से ऐसा वचन सुनकर हृदय में धारकर आमुरत्व को प्राप्त हुवा, (क्रोधित बना ) रुष्ट हुवा, कुपित हुवा, रौद्र बना, दांत पीसने लगा और सामानिक देव से कहने लगा, अहो शक्र नामक देवेन्द्र देवता का राजा दुसरा है और चमर नामक असुरेन्द्र भी दुसरा है: वह शक्रेन्द्र निश्चय ही महर्दिक है और चमरेंद्र है अल्प ऋद्धिवाला है. उस की शोभा से भ्रष्ट करने को मैं स्वयं वहाँ जाऊँ ऐसा करके कोपं संताप सेना
कराजापहादुर लाला मुखदेवसहाथजी ज्वालामसाईगी.