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अमोलक अपनी
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सलेखना से १० आत्मा को यू० झंसकर स० सामंत - अनशन छेर छेदकर का काल के पास में का० काल करके च चमर चारा राज्यपानी में उप्रपात सभा में जा बाबत इनपने उ० उत्पन्न हुवा ॥ १९ ॥ त० तब से वह च० चमर अ असुरेंद्र अ० तुरत का अस्पन पं० पांच Ter
प्रकार की पर पर्याप्ति से ५० पर्याप्त भाव को ग. जावे त० वह ज. जैसे आ० बाह्यर पर्याप्ति है। PE जा० यावद भाग भाषा मनप्राप्ति ॥ २० ॥ त० तब, च० चमर अ० असुरेंद्र पांच प्र० पर्याप्ति से प० पर्याशा भाव को ग. प्राप्त: उ०. ऊर्ध्व बी स्वभाव मे ओ० अवधि ज्ञान से आ० देखे जा०
अणसणाए छेदेन्ता कालमासे कालंकिच्चा चमरचंचाए रापहाणीएं उबवायसभाए
जाव इंदत्ताए उचवन्ने ॥ १९ ॥ तएणं से चमरे अमीरदे असुरराया अहुपोक्याने - पंचविहाए पजत्तीए पत्तिभावं गच्छइ तंजहा आहार पजचीए जाब भासामण
पजत्तीए॥२०॥ तएणं से चमेरे असुरिंदे असुरराया. पंचबिहार पजत्तीए पजत्तिभावं भावार्थ झूसकर, साठ भक्त अनशन कर व काल के अवसर में काल करके चमर चंचा राज्यधानी में उपपात सभा
में देव दृष्य बन की नीचे अपने उत्तम हवा ॥ १९ ॥ वहां चार नामा असुरेन्द्र आहारादि पांच प्रकार की पहिले पर्याप्त बा ॥ २० ॥ फीर पांच पर्याप्ति से पर्याय बना हुवा अमपि ज्ञान से देखते सौधर्म |
अनुवादक-मानसाचारी
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नाबहादुर लाला मुखदेवसंहापनी ज्वालाप्रसादजीं"