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शब्दार्थ कटकर उलथा पाहत एक पुगर में नि:स्थापन की दिदृष्टि अनिमिषनेत्र र थोडी मी
का. काया में अ• यथा प० स्थापित ग. मात्र सर्व इ० इन्द्रिय ग. गुप्त ए० एकरात्रि की म. महबतिमा उ० अंगीकार कर वि विचाताई ॥ १७॥ ते. उम काल ते० उम समय में च. चपर
चंचा ग. राज्यधानी अ० इन्द्र गहत अ. पुरोहित रहित हाथी ॥१८॥त. तर मे वह पृ. र परण वा बालतपस्वी प० बहुत प० प्रतिपूर्ण द. बारह वा. वर्ष ५० पर्याय पा पालकर मा-मामकी सं,
च्छइत्ता असोयवर पायवस्स हेढे पुढविसिला पट्टयसि अट्ठमभत्तं पगिण्हामि दोवि पाए साहट बग्घारियपाणी, एगपोग्गल निविटुदिट्ठी, अणमिसनयणे, ईसिं पब्भारगएणं काएणं अहापणिहिएहिं गत्तेहिं, सबिदिएहिं गुत्तेहिं, एगराइयं महापडिमं उवसंपजित्ता विहरामि ॥ १७ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरचंचा रायहाणी अणिदा अपुरोहिया यावि होत्था, ॥ १८ ॥ तएणं से पूरणे बालतवस्सी बहुपडिपुण्णाई
दुवालसवासाइं परियागं पाउणित्ता मासियाए संलहणाए अत्ताणं झूसेत्ता सर्द्धि भत्ताई भावार्थ स्थापकर सब इन्द्रियों को गोपकर एक रात्रि की महापडिमा अंगीकार करता हुवा विचरता था ॥ १७ ॥
उस काल उस समय में चमर चंचा राज्यधानी इन्द्र रहित पुरोहित रहित थी ॥१८॥ उस समय में वह 1 पूरण नामक बालतपस्वी बारह वर्ष पर्यंत दान प्रवर्ध्या पालकर एक माम की संलग्वना मे आत्मा को
8- पंचमाङ्ग विवाह पणति (भग ) मत्र -१
28 तोमरा शतकका दूसरा उद्दशा g4