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शब्दार्थ
सूत्र
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तः तीसरा पु. पुडमें ५० गारे तं० उसको म० मच्छ क• कच्छ को द० देनेको जं० जो च० चौथा ! पु. पुढ में प. डाले कर करपे त उन को आ० आहार करने को ॥ १५ ॥ पूर्ववत् ॥१६॥ तक उस
से परणे बाल तबस्सी तेणं उरालेणं विपुलेणं, पयत्तेणं, पग्गहिएणं बालतवोकम्मेणं, तं चेव जाव बेभेलसण्णिवेसस्स मज्झं मझेणं निग्गच्छइ निग्गच्छइत्ता पाउय कुंडियमादीयं उवगरणं चउप्पुड्यंच दारुमयं पडिग्गहयं एगतमंते एडेइ एडेइत्ता, बेभेलस्स
सन्निवेसस्स दाहिणपुरच्छिमे दिसीभागे अह नियत्तणियं मंडलं आलिहित्ता संलेह
३ णा असणा झसिए, भत्तपाण पडियाइक्खिए, पाओवगमणं निवन्ने, ॥ १६ ॥ भावार्थ चौथे पड में डालाहुवा आहार भागवता हुवा विचरने लगा !! १५ ॥ फीर उस उदार विस्तीर्ण आज्ञा
युक्त ग्रहण किये हुवे वालतप कर्म से उस का शरीर रूक्ष रक्त मांस रहित हुवा. एकदा मध्य रात्रि में अनित्य जागरणा करते तामली वाल तपस्वी की तरह संथारा करने का विचार किया
र सूर्योदय होते बभल सन्नीश के मध्य में से नीकलर कर मव की ममक्ष पादुका, कुन्डिका आदि) 50 उपकरण और चार पडवाला काष्टमय पात्र एकान्त में रखकर, वेभेल मनिवेश की अग्निकोंन में अर्ध।
ननुपात्र मंडल को आलेखकर संलेखना तप से आत्मा को झूलकर और भक्त पान का प्रत्याख्यान 16कर पादोपगमन संथारा किया. ॥ १६ ॥ उस काल उस समय में छमस्थ अवस्था में अग्यारह
102202 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र
*तासरा शतक का दूसरा उद्देशा