________________
४७८
शब्दार्थ 4१० प्रथम पु० युद्ध में प. टाले क. कल्पताह मे मुझे प०. मर्थित प० पथिक को द० देनेको अंक जो
दो दमरे पु० पुड में प० डाले क० कल्पता है मे० मुझे का० काक सु. श्वान को द० देना जं जो
ग्गहयं गहाय बेभेल सण्णिवेसे उच्चनीयमज्झिमाइं कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडेत्ता जमे पढमे पुडए पडइ, कप्पइ मे तं पत्तिय पहियाणं दलइत्तए, अंमे दोच्चे पुडए पडइ, कप्पइ मे कागसुणयाणं दलायत्तए, अमें तच्चे पुडए पडइ कप्पइ मे तं मच्छ कच्छभाणं दलइत्तए, जं मे चउत्थे पुडए पडइ कप्पइमे तं अ. प्पणा आहारं आहरेत्तए सिकटु, एवं संपेहेइ संपेहइत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रवीए
तं चेव निरवसेसं चउत्थे पुडए पडइ तं अप्पणा आहारं आहारेइ ॥ १५॥ तएणं नामक प्रवर्ध्या ग्रहण करना मुझे श्रेय हैं. दान प्रवा अंगीकार किये पीछे आतापना भमि से पीछे #आकर स्वयं ही चार पुडवाला काष्टमय पात्र लेकर बेभेल सनिवेश में ऊंच, नीच व मध्यम कुल के
ग्रहों की भिक्षाचरी ग्रहण करूंगा. और चार पुडशले पात्र में से प्रथम पुड में जो भिक्षा हालेंगे. जसे में पथिक जनों को देऊंगा, दूसरे पुड में भीक्षा डालेंगे उसे मैं काग प्रमुख पक्षी व श्वान प्रमुख को डालूंमा, तीसरे पुड में जो भीक्षा डालेंगे उसे मत्स्व कच्छ वगैरह को डालूंगा और चौथे पुड में जो भीक्षा डालेंगे उस का मैं आझर करूंगा. ऐसा विचार करके प्रभात होने सब क्रिया की यावत्
4.१ अनुसादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसायमी ज्वालाप्रसादजी.
भाव