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शब्द
सूत्र
भावार्थ
8 पंचांग विवाह पण्णन्ति ( भगवती ) सूत्र
व वर्णन युक्त तः तहां वे बेमेल सन्निवेश में पू० पूरण गा० गाथापति प० रहता था अ० ऋद्धिवंत दि० दिप्त ज० जैसे ता० तामली की व० वक्त व्यता त तैसे ने० जानना ० विशेष च० चारपुड वाला गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं, इद्वेष जंबूद्दीवेदीवे भारहेवासे विज्झगिरिपायमूले. ..बेमेल नाम साण्णवेसे होत्था वण्णओ तत्थणं बेभेले सण्णिवेसे पूरणेनामं गाहाबई परि वसई, अड्डे दित्ते जहा तामलिस्स वतव्वषा तहा नेयव्वा णवरं चउप्पुड्यं दारुमयं पडिग्गहयं करेत्ता जाव विपुलं असणं पाणं, खाइमं साइमं, जाव सर्यमेव चउप्पुयं दारुमयं पडिग्गहयं गाय मुंडे भवित्ता दाणामाए पव्वज्जाएं पल्चइए, पव्वइएवियणं समाणे तंत्र जाव आयावण भूमीए पच्चारुहित्ता, सयमेव वउप्पुडयं दारुमयं पंडिकी मूल में बेमेल नामक सन्निवेश या. उस सन्निवेश में पूरण नामक गाथापति रहता था. वह गाथापति ऋद्धिवंत, दीप्त यावत् सब अधिकार तामली तापस जैसे कहना. अर्थात पूरण गाथापति को
कुटुम्ब जा
गरणा करते विचार हुवा कि मुझे पूर्व संचित पुण्य के उदय से कुटुम्ब आदि सब सुख की सामग्री मीली है इस से जहां लग मेरे पुण्य प्रबल हैं और शरीर में शक्ति है वहां लग प्रभात होते चार पुडवाला काष्टमय पात्र बनाकर अशनादि चारों आहार नीपजाकर, ज्ञाति स्वजनादि की साथ भोजन कर, सब को यथोचित् सत्कारादि कर, ज्येष्ठ पुत्र को गृह के कार्य पर रखकर सब को पूछकर मुंडित बनकर दान
तीसरा शनकका दूतरा उद्देशा
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