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शब्दार्थ |
भावार्थ
** पंचमात्र विवाह पष्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
को आ० खेदित करे ए० ऐमे अ० असुरकुमार देव अ० अरिहंत अ० छद्मस्थ अरिहंत अ० अनगार भा० भवितात्मा की नि० नेश्राय उ० ऊर्ध्व जा० यावत् सौधर्म देवलोक || ११|| स० सत्र अ० असुर कुमार देव उ० ऊर्ध्व उ० ऊंडे जा० यावत् सो० सौधर्म देवलोक गो०गौतम नो०नहीं इ० यह अर्थ स• समर्थ म० महर्द्धिक अ० असुर कुमार देव उ० ऊर्ध्व उकडे जा० यावत् सो० सौधर्म देवलोक ||१२|| ए०यह मं० भगवन् अ० असुरेन्द्र अ०
अरहंतचेइयाणिवा, अणगारे, भावियप्पणो निस्साए उ कप्पे ॥ ११ ॥ सब्वेत्रियणं भंते ! असुरकुमारा देवा उ
उप्पयंति जात्र सोहम्मे उपयंति जाव सोहम्मे
कप्पे ! गोयम' ! णोइणद्वे समट्टे । महिड्डियाणं, असुरकुमारा देवा उङ्कं उप्पयंति जाव सोहम्मे कप्पे ॥ ७२ ॥ एसवियणं भंते ! चमरं असुरिंदे असुरराया उड् उप
स्थान व पर्वत के आश्रय से बहुत बडा अश्ववल, हस्ती बल, योध बल, और धनुष्य बल को पराजित कर { सकते हैं; ऐसे ही असुर कुमार देव अरिहंत भगवन्त, अरिहंत चैस सो द्रव्य अरिहंत उद्मस्थ, अनगार {और भवितात्मा का आश्रय लेकर ऊंचे सौधर्म देवलोक तक जाते हैं ॥। ११ ॥ अहो भगवन् ! क्या सब असुर कुमार देव ऊंबे जाने की शक्तिवाले यावत् सौधर्म देवलोक में गये और जायेंगे ! अहो गौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. महर्जिन असुरकुमार देव मात्र सौधर्म देवलोक में मये और जावेंगे ॥ १२ ॥
तीस शतक का दूसरा उद्देशा -
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