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अशापाया आर्य भूत स० उत्तम हो ज० जिससे अ० असुर कुमारदेव उ• अर्ध्व जा. यावत् सो सौधर्म देवलोका
१०॥ कि. किस नि. निश्राय से भं० भगवन अ० असुरकुमार देव उ अर्थ जायावत् सौ सौ देवलोक गो गौतम से० वह ज जैसे इ० यहां स०अनार्य व०बर के अनार्य के ट० टकण देशके अनार्य । भभूचुकदेश के ५० प्रश्नदेश के पु०भिल्लादि ए०एक म०बडा व बन गसहा दु०. दूर्ग द० गुफा वि० विषम प० पर्वतकी णी० निश्राय सु० अतिशय अर अश्ववल ह० हस्तियल मो० योधवल ध० घमुष्ययल
उर्दू उप्पयंति जाव सोहम्मेकप्पे ॥ १० ॥ किं निस्साएणं भंते । असुरकुमारा देवा है उड्डे उप्पयंति जाव सोहम्मे कप्पे ? गोयमा ! से जहानामए इह सव्वराइबा, वन्वE राइवा, टंकणाइवा, भूच्याइवा, पण्हायाइवा, पुलिंदाइवा, एगं महं वर्णवा, गडेवा, १ दुग्गंवा, दरिंवा, विसमवा, पव्वयंवा, णीसाए सुमहल्लमवि, अस्सबलंवा, हत्थिबलंबा,
जोहबलंवा धणुबलंवा, आगिलंति; एवामेव असुरकुमारा देव णण्णस्थ अरहंतेवा, भावार्थ Ft. और जब ऐसा होता है तब यहां मनष्य लोक में आश्चर्यरूप ( अच्छेरा) गिना जाता है॥१
हो भगवन् ! असुर कुमार देव किस की नेश्राय ( आश्रय ) लेकर उपर जाते हैं ? अहो गौतम ! जैसे जंगल के निवासी भील लोक, बर. देश के अनार्य लोक, टंकण देश के अनार्य लोक, भूच देश के अनार्य लोक, प्रश्न देश के अनार्य लोक, और भील वगैरह लोकों एक बडा बन, खड्डा, दुर्ग, गुफा, विषम-17
.48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलकर
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदवसहायनी ज्वालाप्रसादजी