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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
18- पंचमांग विवाह पण्णाति ( भगवती )
देवियों की स० साथ दि० दीव्य भो० भोग भोगवते व विचरने को ए अमर कुमारदेव सो० सौधर्म देवलोक में ग० गये ग० जावेंगे ॥ ९ ॥ के० कितने { काल में अ० अमुर कुमार देव जं०ऊर्ध्व उकडे जा०यावत् सो० सौधर्म दे० देवलोक में ग० गये गं जावेंगे गो० गौतम अ० अनंत ओ० उत्सर्पिणी अ अर्पिणी स० समय व्यतीत हुने अ ० है ए० ऐसे लो•
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कुमारदेव ता० उन अ ऐसे गो० गौतम अ०
भूते, असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहरित्तए ॥ एवं खलु गोयमा ! असुरकुमारा देवा सोहम्मं कप्पं गयाय गमिस्संति ॥ ९॥ केत्रइयकालस्सणं भंते ! असुरकुमारा देवा उढुं उप्पयंति जात्र सोहम्मं कप्पं गयाय गमिस्संतिय ? गोयमा ! अनंताहिं ऊसप्पिणीहिं अनंताहिं अवसप्पिणीहिं समइकंताहिं । अत्थिणं एस भत्रे लोयत्थेग्यभए समुप्पज्जइ, जण्णं असुरकुमारा देवा समर्थ हैं परंतु यदि वे अप्सराओं उन को आदर करे नहीं या उन को स्वामीपने जाने नहीं तो उन की {साथ भोग भोगने को वे समर्थ नहीं हैं. अहो गौतम ! इस कारन से असुर कुमार देव सौधर्म देवलोक में {गये और जावेंगे ॥ ९ ॥ अहो भगवन् ! कितने काल में असुर कुमार देव ऊंचे जावे यावत् सौधर्म देवलोक में गये या जायेंगे ! अहो गौतम ! अनंत अवसर्पिणी उत्तर्पिणी व्यतीत हुए पीछे ऐसा होता
* तीसरा शतक का दूसरा उद्देशा
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