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शब्दार्थ ग. गये हुवे वा० उन अ. असा की स• साथ दि० दीव्य मो• भौगोपभोग 8० भोगवते.वि. चिरने
को जो नहीं इ० यह अर्थ स० ममर्थ तक तहां से प० नीकलकर इ० यहाँ आ० आकर ज. जो अ०१॥ दचियों आ० भादर करती हैं ५०. पारीचारणा इच्छे प० समर्थ ते०. वे अ अमर कुमार दे० देव ता. उन अ० देवियों की स० साथ दिदिव्य भा० भाग भुं० भोगते वि०विचरने को अथवा सा• वे अपने देवियों नो० नहीं भा• आदर करे मो. नहीं प. परिचारणा इच्छे णो नहीं प०, समर्थ ते वे अ० असुर
सुरकुमारा देवा तत्थगया चव समाणा ताहिं अच्छराहिं सादि दिन्वाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहारत्तए प्रो इणद्वे सम? । तेणं तओ पडिनियत्तंति पड़िानयत्त । इत्ता इहमागच्छइ इहमागच्छइत्ता, जइणं ताओ अच्छराओ आढायति परियाणंति पभूण ते असुरकुमारा देवा ताहिं अच्छराहिं सद्धिं दिव्वाइं भोग भोगाई । भुंजमाणा विहरित्तए ॥ अहणं ताओ अच्छराओ नो आढायंति नो परियाणंति णोणं है देव चैमानिक में रही हुई अप्सराओं की साथ भोग भोगवने को क्या समर्थ हैं ? अहो गौतम : यह अर्थ समर्थ नहीं है... अर्थात् वे वैमानिक देवलोक में वहां की अप्सराओं की साथ भोग भोगवने को समर्थ
नहीं हैं. वे अमुर कुमार देव वहां से अप्सराओं को लेकर पीछे अपने विमान में आते हैं, विमान में आये 16 पीछे यदि वे अप्सराओं उन को आलिंगन करे या सामीपने जाने तो वे उन की साथ भोग भोगने को
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी
मकासक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ