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शब्दार्थों में विकुर्वणा करते ५० परिचारणा करते आ० आत्मरक्षकदेव को वि• बास उपजावे अ० यथा ल० लघु
र० रत्न ग० ग्रहणकर आ. स्वतः ए. एकान्त में अ० जावे ॥ ७॥ अ.है भं. भगवन् ते. उन दें देवोको अ० यथा ल० लघु र० रत्न इं० हां अ० है से• वह क. क्या इ० इनको प० करे त. पीछे का काया को प० पीडा उपजावे ॥८॥५० समर्थ भं. भगवन् अ० असुर कुमार देव त. तो
गोममा ! लेसिणं देवाणं भवपञ्चइय वेराणुबंधे तेणं देवा विकुन्नमाणा परियारेमाणांवा, है। आयरक्खे देवे विचासेंति, अहा लहुसगाई रयणाई गहाय आयाए एगंतमंतं अव
कमति ॥७॥ आत्थिणं भंते ! तेसिं देवाणं अहा लहुसगाई रयणाई ? हंता. आत्थ।
से कहमिदाणि पकरेइ, तओसे पच्छाकायं पव्वहंति ॥ ८ ॥ पभूणं भंते ! तेसिं. अ. गये और जानेंगे ? अहो मौसम ! भवप्रन्पयिक बैरसे वे देव विकुर्वणा करते हुए या अन्य देवी की साथ परिचारणा करने की बांच्छा करते हुए आत्म रक्षक देवको त्रास उत्पत्र करते हैं. अयवा बहुत रस्नों ग्रहण करके एकान्त में चलेजाते है ॥७॥ अहो भगवन् ! उन वैमानिक देवों को क्या यथा-1
य छोते रत्न है ? हां गौतय ! उन को छोटे रत्नों रहे हुने हैं. फीर उन रत्नों की चोरी करनेवाले को क्या करते हैं ? अहो मौतम ! उन लेनेवाले को रत्नका मालिक देवता प्रहार करता है जिस से उन को महावेदमा होसी वह जघन्य गर्मुहूर्त उत्कृष्ट छमास तक रहती है ॥ ८॥ अहो भगवन् ! अमुर कुमार का
विवाह षण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
+सीसग शतक का दूसरा उद्देशा