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सूत्र
भावार्थ
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(०: अर कुमार देव नं० नंदीश्वर द्वीप को ग गये ग० जविं ॥ ६ ॥ अ० है मं० भगवन् सुकुमार देव देवका उ० ऊर्ध्वगति विषय ई० हां अ० है के० कितनी भ० भगत्रम् अ० असुर कुमार देवका उ० ऊर्ध्वगति विषय गो गौतम जा० यावत् अ० अच्युत देवलोक सो० सौधर्म देवलोक (१० गये ग० जावेंगे किं० किस प० प्रयोजन से भ० भगवन् अ० असुर कुमारदेव सो० सौधर्म देवलोक {को ग० गये ग० जायेंगे गो० मौसम ने उन दे० देवों का भ० भवमत्यय का वे वैरसे से ० वे देवदेव त्रि० कुमारा' देवा नंदिस्सरवरं दी गयाय गमिस्संतिय ॥ ६ ॥ सात्थिनं भंते! असुर कुमाराणं देवाणं उड्डगइत्रिलए ? हंता अस्थि । केवइयं चणं भंते ! असुरकुमाराणं देवानं उ गतिविसए ? गोयमा ! जाव अच्चुए कप्पे सोहम्मं पुण्यंकप्पं गयाय गमि सांतिय । किं पत्तियणं भंते ! अंसुरकुमारा देवा सोहम्मं कप्पं मयाय गमिस्सलिय ? महोत्सव और निर्वाण का महोत्सव इन चार कारन से नंदीश्वर द्वीप को असुर कुमार देवता गतकाल में गये और भविष्य में जायेंगे || ६ || अहो भगवन् ! असुरकुमार देवों की उपर जाने की शक्ति का विषय है ? हा गौतम! असुर कुमार देवों को उपर जाने की शक्ति है. यही भगवन् ! वे ऊर्ध्व लोक में कहां लग जा सकते हैं ! अहो गौतम ! उन में अच्युत देवलोक तक जाने की शक्ति हैं किन्तु सौधर्म देवलोक तक गये हैं और जायेंगे. अहो भगवन् ! असुर कुमार देव किस कारन से
ऋपिसी
48 अनुवादक - वालाचारी मुनि श्री
* प्रकाशक सजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
सौधर्म देवलोक में)
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