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शब्दार्थ
14 ते उस काल ने उस समय में रा० राजगृह न० नगर हो० था जा० यावत् प०परिषदा १० पर्यंपा । 4सना करते ॥ * ॥ ते. उस काल ते० उम समय में २०. चवर अ• असुरेन्द्र च० चमर चंचा रा० राज्य
धानी स० सभा सु० सुधर्मा के.च०चमर सी. सिंहासन च० चौप्तठ सा० सामानिक सासहस्र जाल्यावर न० नाव्यविधि उ. बताकर जा०जिसदिशि से पा० आया ता. उसदिशि में प० पीछागया ॥१॥
तेणं कालेणं, तेणं समएणं रायगिहे नयरे होत्था, जाव परिसा पज्जुवासइ, ॥ * ॥ .तेणं कालेणं, तेणं समएणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमर चंचाए रायहाणीए सभाए. है सुहम्माए चमरंसि सीहासणसि चउप्तट्ठीए सामाणिय साहस्सोहिं जाव नदृविहं उव
दंसेत्ता जामेवदिसिं पाउब्भए तामेवदिसि पडिगए ॥ १ ॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे भावार्थ प्रथम उद्देशे में देवता की विकर्षण का सारूप कहा. अब दूसरे उद्देशे में देव की शक्ति का प्रश्न
पूछते हैं. उस काल उस समय में राजगृह नामक नगर था. उस के गुणशील नामक उद्यान में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे. परिषदा आकर सेवा भक्ति करने लगी.॥७॥ उस काल उस समय में | चमर नामक असुरेन्द्र असुरदेव के राजा चमर चंचा राज्यवानि में मुधर्मा सभा के चमर नामक सिंहासन पर
चौसठ हजार सामानिक देव सहित बैठे हुए थे. श्री श्रमण भगवन्त को राजगृही नगरी के गुणशील, 1 नामक उद्यान में बैठे हवे अवधिज्ञान से देखकर सब परिवार सहित वंदन करने को आय, यावतीका
पंचमांग विवाह पण्यत्तेि ( भगवती) सूत्र ++
4 तीसरा शतक का दूसरा उद्देशा +ER
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