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कान
शब्दार्थ १० भवान् बोर गौतम सा अमण भ. भगवस्त प. महावीर को 20 बंदनाकर न० नमस्कारकर ह त
ऐसे ५० बोले अ० है भं भगवर ई.इस र० रत्नप्रभा पृथ्वी की अ० मीचे अ० असुर कुमार देष प.al रहते हैं मो. गौतम पो० नहीं इ. यह अर्थ स. समर्थ १० ऐसे मा० यावत् अ० नीचे स० मातबी पु. पृथ्वी की मो सौधर्म क. देवलोक की अ• नीचे जा. यावत् ई० ईपत्पागभार . पृथ्वी की। 40 असर कुमार दे. देव प० रहते हैं णो नहीं इ. यह अर्थ स समर्थ ॥२॥मेवे क. किस _समणं भगवं महावीरं वैदइ नमसइ नमसइत्ता, एवं वयासी आत्थिणं भंते ! इमीसे
रयणप्पमाए पुढबीए अहे असुरकुमारा देवा परिवसाते, ? गोयमा ! णो इण? समट्टे. स एवं जाच अहे सत्समाए पढवीए, सोहम्मस्त कप्पस्स अहे. जाव आत्थणं भंते !
ईसिप्पभाए पुढवीए असुरकुमारा देवा परिवसंति ? जो इणष्टुं समटे ॥२॥ से कहिं भोवार्थ
बत्तीस प्रकार के नाटक बताकर जहां से आये थे वहां पीछे गये ॥१॥ उस समय में भी गोतम स्वामीने श्रमण भगवंत श्रीमहावीर को वंदना नमस्कारकर ऐना प्रश्न किया कि अंहो भगवन् ! मसुर कुमार मासि के देव क्या रत्नप्रभा पृथ्वी की नीचे रहते हैं ? अहो मौतम ! यह अर्थ योग्य नहीं है. अहो ममवम् म ये दुतरी, तीमरी यावत् सातवी पृथ्वी की नीचे रहते हैं अथवा सोधर्म देवलोक यावत् ईषत् माधार पृथ्वी की मीचे रहते हैं ! अहो गौतम ? यह अर्थ योग्य नहीं है. ॥२॥ अब अहो
का अमुवादक-बालप्रलयाने मुनि श्री अमोलक कापणी+
काधक-यजाबहादुर लाला सुखदेक्सहायनी वालाप्रसादजी.