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शब्दार्थ भगवन् ता० उस दे० देवलोक से आ० आयुष्य क्षय से जा. यावत् कः कहाँ उ० उपजेगा गो० गौतम
म० महाविदेह क्षेत्र में सि. सिझेगा जा. यावत् अं० अंतकरेगा स• यह ए. ऐसे में भगवन् त्तिः ऐसे ॥७॥१॥ . *
महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ जाव अंत करेहिइ सेवं भंते भंते त्ति ॥ गाहाओ छठुट्ठममासोअडअड, मासो वासाइं अद्ध छम्मासा, तीसग कुरुदत्ताणं, तव भत्त परित्त परियाओ ॥ १ ॥ उच्चत्त विमाणाणं पाउब्भव पेच्छणाय सलावे ॥ किञ्चवि
वादुप्पत्ती, सणंकुमारेय भवियत्तं ॥२॥ मोया सम्मत्तो ॥ इति तइए सए पढमा उद्देसो E सम्मत्तो ॥ ३ ॥१॥.... *
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* * भावार्थ कार कहा है उस का संक्षेप से गाथा द्वारा बतलाते हैं. तिष्यक अनगारन बेले २ पारणे किये, कुरुदत्त
अनगारने तेले तेले पारने किये, तिष्यक अनगार का एक मासका संथारा और कुरुदत्त को १५ दिन का संथारा तिष्यक अनगार को आठ वर्ष की दीक्षा और कुरुदत्त को छ मास की दीक्षा. विमानों की ऊंचाई इन्द्रों का मीलना, इन्द्रों का अवलोकन, इन्द्रों का संभाषण, इन्द्रों का कार्य, इन्द्रों का
विवाद, सनत्कुमारेन्द्र द्वारा समाधान और भव्य अभव्य का प्रश्न कहाः यह मोया नामक नगरी का 10 अधिकार समाप्त हुवा. यह तीसरे शतकका प्रथम उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ३ ॥१॥ + .
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
Swimmindian .प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायनी ज्वालापसादनी