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शब्दार्थ
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पंचांग हिवाच पम्पत्ति (भगवती) मूत्र Bre
श्रावक सा० श्राविका का हि० हितका इच्छक सु. सुख का इच्छक प. पथ्य का इच्छक अं• अनुकंपा सहित निमोक्ष हि हित मुख नि० मोक्ष का इच्छक ते. इसलिये गो. गौतम स० सनत्कुमार भ० भवसिद्धिक जी. यावत् नो नहीं अ. अचरिम ॥ ६७॥स. सनत्कुमार भ० भगवन दे. देवेन्द्र की के० कितनी ठि० स्थिति ५० प्ररूपी स० सात सा. सागरोपम की ठि० स्थिति ॥ ५८ ॥ से बह भ०७
जाणं, बहूणं समणीणं, बहणं सावयाणं, बहुणं सावियाणं हियकामए, सुहकामए, पत्थकामए, आणुकंपिए, निस्सेयसिए, हिय, सुह, निस्सेसकामए, से तेण?णं गोयमा ! . सणकुमारेणं भवसिद्धिए जाव णो अचरिमे ॥ ५७ ॥ सणंकुमारस्स भंते ! देविंदस्स में देवरणों केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ? गोयमा ! सत्तसागरीवमाई ठिई पण्णत्ता
॥५८॥ सेणं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं ज़ाव कहिं उववजिहिति? गोयमा ! हित के कामी, सुख के कानी, पथ्य के कामी, अनुकम्पावाले, मोक्षके वच्छिक वैसे ही हित, सुख, व मोक्ष के कामी है। इसलिये अहो गौतम ! वे पमहाष्टि यांवत् चरिम शरीरी है ॥५॥ अहो भगवन् सनत्कुमारेन्द्र की कितनी स्थिति कही? अहो गौतम ! सनत्कुमारेन्द्र की स्थिति सात. सागरोपम की कही ॥५०॥ अहो भगवन् । यह सनत्कुमारे आयुष्य का क्षय हुवे पीछे वहां से कहा उत्पन्न होवेंगे? अहो गौतम।। महविदेह क्षेत्र में उत्पन्न झमे सिझेंगे, बुझेमे मारन संत्र दुखों का अंत करेंगे अब इस उद्देशे में भी अपि
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सीसरा शवकका पहिला उद्देशा 9
भावार्थ
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