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शब्दाथे|4|मार ० भगवन कि क्या भ० भसिद्धिक अ० अभवसिद्धिक स० समदृष्टि मि. मिथ्या दृष्टि प० परत
संसारी अ अत संसारी मु० मुलमबोधि दु० दुर्लभ बोधि आ० आराधिक वि० विराधिक च० चरम 4 . अचरम गो. गौतम स० सनत्कुमार दे. देवेन्द्र भ० भवसिद्धिक णो नहीं अ० अभवसिदिक ए.
ऐसे स• समष्टि ५० परत मु० सुलभ बोधि औ• आराधिक च. चरम म०प्रशस्त ने जानना से वह के कैसे भे० भगवन् गो० गौतम स० सनत्कुमार दें० देवेन्द्र ब. बहुत स. साधु सं० साध्वी सा. __रेणं भंते ! देविंदे देवराया किं भवसिद्धिए, अभवसिद्धिए, सम्मविट्ठी, मिच्छदिट्टी - परित्तससारिए, अणंतसंसारिए, सुलहबोहिए, दुल्लमबोहिए, आराहए, विराहए, चरिमे
अचरिमे ? गोयमा ! सर्णकुमारेणं देविंद देवराया भवसिद्धिए जो अभवसिद्धिए, एवं सम्ममिच्छ, परित्त अणंत, सुलहबोहिए दुल्लभबोहिए, आराहए विराहिए चरिमे पसत्थं
नेयव्यं ॥ से केणट्टेणं औते ! गोयमा ! सणंकुमारे देविंदे देवराया बहूणं सम- . भावार्थ
या अभयसिद्धिक है, सम्यग् दृष्टि में या मिथ्याहीष्ट है, परत संसारी हैं. या अनंत संसारी है, मुलभ में बोधी हैं या दुर्लभ बोधी है, आराधक है या विराधक है और चरिमै या अचरिम है ? अहो गौतम ! सनत्कुमारेन्द्र भवं सिद्धिक, सम्यग् दृष्टि, परत संसास, सुलभ बोधी, अराधक व चरिम शगैरी हैं. अही भगवन् ! यह किस तरह है? अहो गौतम : सनत्कुमारेन्द्र बहुत साधु साध्वी, श्रावक, श्राविका के
अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषित
माशंकभांजविहादुर लाली सुखदेवसहायजी जालापतादजी.