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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
मग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र +
अ० है ० भगवन ते उन स० शक्र ईशान दे देवेन्द्रको वि० विवाद स० उत्पन्न होता है है ० डॉ अच्छे से० वह क० क्या इ० उसवक्त प० करे गो० गौतम स० शक्र ईशान दे० देवेन्द्र म सनत्कुमार दे० देवेन्द्रको म० मनसे चिन्तवना क० करे त० तब से वह स० सनस्कुमार ते उन स० शक्र ईशान दे० देवेन्द्र से म० चितवन क० कराये खि शीघ्र स० शक्र ईशान दे० देवेन्द्र की अं० पास पा० जात्रे जं० जो से० वह व० कडे त० उन को आ० आज्ञा उ० उपपात व वचन नि० निर्देश में चि० रहे ॥ २० ॥ स० सनत्कु अत्थिणं भंते : तेसिं सक्कीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं वित्रादा समुप्पजंति ? हंता आत्थि । से कहाभिदाणिं पकरेइ ? गोयमा ! ताहेचेवणं सक्कीसाणा देविंदा देवरायाणो सणकुमारं देविंद देवरायं मणसी करेइ, । तएणं से सणकुमारे देविंदे देवराया तेहिं सक्कीसाणेहिं देविंदेहं देवराईहिं मणसी कए समाणे खिप्पामेव सक्कीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं अंतियं पाउब्भवंति । जैसे वयइ तस्स आणाउववायवयणणिद्दे से चिट्ठति ॥५६॥सणंकुमाक्या विवाद उत्पन्न होता है ? हां गौतम ! उन को विवाद उत्पन्न होता है. अहो भगवन् ! विवाद {के अवसर में वे क्या करे ? अहो गौतम ! वे दोनों सनत्कुमारेन्द्रकी मन से चिन्तवना करे. इस तरह उनको चिन्तवना करते हुवे जानकर सनत्कुमारेन्द्र शीघ्र शक्रेन्द्र ईशानेन्द्र की पास आत्रे. और जो वह कहे वैसे उन की आज्ञा, उपपात, वचन व निर्देश में रहे ॥ ५६ ॥ अहो भगवन् ! सनत्कुमारेन्द्र क्या भवसिद्धिक है।
44- तीसरा शतकका पहिला उद्देशा
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