________________
ALAcned
सन्दा करने का है. हाल है से वह क• क्या प० करे गे गौतम से० वह स० शक्र दे० देवेन्द्र ई ईशान ।
० देवेन्द्र की अं० पास पा. नावे ई० ईशान दे० देवेन्द्र स० शक्र दे० देवेन्द्र की अं० पास पा० नावे EH९ शक दे० देवेन्द्र दा० दक्षिणार्ध लोक के अ० अधिपति ई० ईशान दे० देवेन्द्र उ० उत्तरार्ध लोकके में श्रा अधिपति से वे अ. अन्योन्य के कि० कार्य क. करने योग्य प०करते हो वि.विचरते हैं॥५॥ई
आत्थिणं भंते! तेसिं सक्रीसाणाणं देविंदाणं देवराईणं किच्चाई करणिज्जाइं ? हता अस्थि, । से कहमियाणि पकरेइ ? गोयमा ! ताहे चेवणं से सक्के देविंदे देवराया ईसाणस्स देविंदस्स देवरपणो अंतियं पाउन्भवह । ईसाणेवा देविंद देवराया सक्कस्स. दोषदरस देवरणो अंतियं पाउन्भवइ । इति भो सक्का देविंदा देवराया दाहिणडलो. गाहिबई । इति भो ईसाणां देविंदा देवराया उत्तरड्ड लोगाहिबई । इति भो इति
भोत्ति, ते अण्णमण्णस्स किच्चाई करणिजाइं पञ्चणुष्भवमाणा विहरंलि ॥ ५५ ॥ भावार्थ
योग्य कार्य हैं ? हां गौतम ! उन को कार्य हैं. अहो भगवन् ! ये कैसे करते हैं ? अहो. गौतम ! केन्द्र ईशानेन्द्र की पास प्रगट होवे. ईशानेन्द्र शक्रेन्द्र की पाम प्रगट होचे. और भी शकेन्द्र दक्षिणार्थ
क का अधिषति है और ईशानेन् उत्तराध लोक का अधिपति है.. इति भो इति भो ऐसे परस्पर 17 वार्तालाप करते परस्पर के कार्य करते हुवे विचरते हैं ॥ ५५ ॥ अहो भगवन ! शक्रेन्द्र व ईशानेन्द्र को
अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी म..
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी मालापसादजी *