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क पंचमाङ्ग विवाह पण्णात ( भगवती ) सूत्र 488
कि क्या बोलाया अविना बोलाया-गो. गौतम आ. बोलाया अ० विना बोलाया ॥५२॥ ०५. समर्थ भं० भगवन् स. केंद्र दे०. देवेंद्र ई. ईशान दे वेद्र को स. सब दिशा स. विदिशामें स.. V देखने को 10 जैसे पा० आने में ततैसे दो दो या. आलापक ने जानना ॥५३॥प. समर्थ
स. शक दे• देवेन्द्र ई ईशान दे देवेन्द्र की स• साथ आ० आलाप सं० संलाप क० करने को है. हा १५० समर्थ ॥५४॥ अ० है ० भगमम् ते. उन म. शक ईशान दे देवेन्द्र को कि० कार्य क.११
मोयमा ! आढामाणेवि पभू, अणाढामाणेवि पभू ॥ ५२ ॥ पभूणं भंते : सक्के देविंद्रे है देवराया ईसाणं देविंद देवरायं सपक्खि सपडिदिसिं समाभिलोएचए? जहा पाउभवणा लहा योवि आलावमा योमन्वा ॥ ५३ ॥ पक्षणं भंते! सके देविंदे देवराया ईसा
येणं देविदेणं सर्हि भालावंचा संलावंवा करेत्तए । हला प्रभू, जहा पाउम्भवणा ॥ और बिना बोलाये हुए श्री माले को समर्थ है ।। ५.२ ॥ अहो भगवन ! केन्द्र ईशानेन्द्र की बाजु पर या की दिशी विदिशी में देखने को समर्थ है ? अहो गौतम ! जैसे आने के हो, आलापक कहे की देखने के दो मालाफक मस्सना ॥ ५३ ॥ अहो भगान् ! शवेन्द्र ईशानेन्द्र की साध आलाप माला करमे को क्या समर्थ है ? हो मौतम ! शकेन्द्र 'ईशानेन्द्ध की साथ आलाम सलाम करने को समझ मगरह पाने के दो आलाप जैसे कहना ॥ १४ ॥ अमो भगक्नु ! क्या जन शक ईशानेन्द्र देवों को माता
तीसरा शतकका महिला उद्दमा
भावार्थ
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