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शब्दार्थ कुमार दे देव देवी के ए. इस अर्थ म. सम्यक विविनय से भुं० वारंवार खा. खमाते तं. उस
दि• दीव्य दे० देवऋद्धि जा. यावत् ते० तेनोलेश्या ५० साहरण करे॥४६॥ त उस दिन गो० गौतम हते. वेब बलिचंचा रा. राज्यधानी में व. रहने वाले ब. बहुत अ० असुर कुमार दे० देव देवी ई014 ईशान दे० देवेन्द्र को आ० आदरकरे जायावत् प०पर्युपासना करे ई० ईशान दे० देवेन्द्र की आ• आज्ञा २० उपपात २० वचन नि निर्देश में चि० रहे गो० गौतम ई० ईशान दे० देवेन्द्र दे० देवराजा की सा०
असुरकुमारेहिं देवहिय देवीहिय एयमटुं सम्मं विणएणं भुलो भुजो खामिएसमाणे तं दिन्वं देविढेि जाव तेयलेस्सं पडिसाहरइ ॥४६॥ तप्पमिइचणं गोयमा ! ते बलिचंचारायहाणिवत्थन्वा बहवे असुरकुमारा देवाय देवीओय ईसाणं देविंदं देवरायं आढ़ति जाव पज्जुवासंति ईसाणस्सयस्स देविंदरस देवरण्णो आणा उववाय वयण निदेसे चिटुंति ॥ एवंखलु गोयमा ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविड्डी जाव ईशानेन्द्रने अपनी दीव्य देवदि यावत् तेजोलेश्या पीछी ले ली ॥ ४६॥ उस दिन से बलिचंचा राज्यधानी ६० के असुर कुमार देव ईशानेन्द्रका आदर सत्कार करते हैं यावत् उन की पर्युपासना करते हैं. और,
न की आशा, उपपात, वचन व निर्देश में रहते हैं. अहो गौतम ! ईशानेन्द्रने ऐसी दीव्य देवदि ।
- पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र 48
तीसरा शतक का पहिला उद्देशा