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________________ | अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी + 4 बधाकर ए. ऐसा व बोले १० आहेदेदेवानुप्रिय दि० दीव्य दे० देवऋद्धि मा. यावत् सन्मुख हुइ दि० देखी दे० देवानुपिय की दि० दीव्य दे देवऋद्धि जा. यावत् ल० लब्ध पल्याप्त स० सन्मुखहुइ स्वा० स्खमाते हैं दे० देवानुपिय स. क्षमाकरो तु. तुम्हे ण नहीं भुवारंवार एक ऐसा क. करने को एक ऐसे स. सम्यक् वि. विनय से भुं० वारंवार खा०. स्वमाते हैं. ॥ ४५ ॥त. तब से. ई० ईशान दे. देवेन्द्र वे० उन व० बलिचचा रा. राज्यधानी में व० रहने वाले ब• बहुत अ० अमुर बद्धवंति वढावतित्ता एवं वयासी अहोणं देवाणुप्पिएहिं दिव्वा देविड्डी जाव आभि समण्णागया तं दिवाणं देवाणुप्पियाणं दिव्वा देविड्डा जावलद्धा पत्ता अभिसमण्णागया, खामेमोणं देवाणुप्पिया ? खमं तुमं देवाणुप्पिया ! खमंतुमरिहंतुणं देवाणुप्पिया । गाइभुजो भुजो एवं करणयाएत्तिकटु, एयमटुं सम्मं विणएणं भुजो भुजो खामति । ॥ ४५ ॥ तएणं से ईसाणे देविंदे देवराया तेहिं बलिचंचारायहाणि वत्थव्वेहिं बहहिं । ई यावत् सन्मुख ऋद्धि हमने देखी हुई है अहो देवानुप्रिय ! हम आपका अपराध खमाते हैं. तुम हमारा अपराध की क्षमा करो. अहो देवानुपिय ! तुम हमारा अपराध क्षमा करने योग्य हो. इम कार्य वारंवार नहीं करेंगे. इस तरह सपमापसे विनय नमूता सहित क्षमा मांगने लगे ॥४५॥ जब बलिचंचा राज्यधानी में रहनेवाले देवों इस तरह बहुत विनय व नमूता सहित समभाव से वारंवार खमामलगे तब काशक-राजाबहादुर लाला मुखदबसहायजी जालाप्रसादजी . भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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