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शब्दार्थ काल करके ई०. ईशान क• देवलोक में ई० ईशान बशिक विमान में उ० उपपात सभा में दे० देवशैय्या में *
दे देवदृष्य वस्त्र के अं० अतर में अं अंगुलका अ० असंख्यातवा भाग भो० अवगाहना ई० ईशान दे०देवेन्द्र वि. E विरह काल में ई० ईशान देवेन्द्रपने उ• उत्पन्न हुवा ॥ ३८ ॥ त तब से वह ई० ईशान दे देवेन्द्र दे०
देवराजा अ० तुर्त का उत्पन्न पं. पांच प्रकार की १० पर्याप्ति से प० पर्याप्त भाव को ग. जावे तं० वह ज जैसे भा० आहार पर्णप्ति जाल्यावत् भा भाषामन पर्याप्ति॥३१॥त तब बवलिचंचा रा० राज्यधानी
ईसाणे कप्पे ईसाणवडिसए विमाणे उववाय सभाए देवसयणिजंसि देवदूसंतरियं अं. गुलस्स असंखेजइ भागमेतीए ओगाहणाए ईसाणे देविंदे विरहिय कालसमयसि ईसाण देविदत्ताए उववण्णे ॥ ३८ ॥ तएणं से ईसाणे देविंद देवराया अहुणो बवण्णे पंचविहाए पजत्तीए पजत्तिभावं गच्छइ तंजहा आहार पजत्तीए, जाव भासामन
पज्जत्तीए ॥ ३९ ॥ तएणं बलिचंचा रायहाणि वत्थन्वया. बहवे असुरकुमारा देवाय भावार्थ
करके काल के अवसर में काल कर ईशान देवलोक के ईशान बडिशक नायक विमान की उपपात सभा में देवशैय्या में देवदूष्य वस्त्र की नीचे अंगुल के असंख्यात भाग की अवगाहना से ईशान देवेन्द्र के विरह
काल में ईशानेन्द्रपने उत्पन्न हुवे ॥ ३८ ॥ वह तत्काल का उत्पन्न हुवा ईशानेन्द्र आहार पर्याप्ति आदि 1 पांच प्रकार की पति से पर्याप्त हुवा ॥ ३९ ॥ उस समय में बलिचंचा राज्यधानी में रहनेवाले बहुत
43 अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिणी
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी *