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शब्दार्थ
बहुत अ० असुर कुमार के दे० देव देवी से एक ऐसे बु. कहते हुवे ए. इस अर्थ को नो० नहीं आ. आदरकर नो नहीं. अच्छा जाने तु तुष्णित सं० रहे ॥ ३४ ॥त. तब ते वे बं० बालचचा रा० राज्यधानि में व० रहते ब० बहुत अ० असुर कुमार दे. देव दे० देवी ता० तामलि मो० मोर्यपुत्र को दो दुसरीवक्त तक तीसरी वक्त ति तीनवक्त आ० आदान प. प्रदक्षिणा क० करके ॥ ३५॥ ता० तामलि • मली बालतकस्सी तेहिं बलिचंचारायराणि वत्थव्वेहिं बहुंहिं असुरकुमारेहिं देवहिय देवीहिय, एवं वुत्तेसमाणे, एयमटुं णो आढाइ, णो परियाणइ, तुसिणीए संचिट्टइ ॥ ॥ ३४ ॥ तएणं ते बालचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवाय देवीओय. तामलिं मोरियपुत्तं दोचंपि तच्चंपि तिक्खुत्तो आयाहिण पयाहणं करेइ करेइत्ता, जाव अम्हं चण देवाणुप्पिया ! बलिचंचारायाणी आणंदा जार ठिइप्पकप्पं पकरेह
जाव दोच्चंपि ताप एवं वुत्तेसमाणे जाव तुसिणीए संचिट्ठइ॥३५॥तएणं ते बालचंचा- . भावार्थक
कुमार देवत देवियोंने जो कहा उस का अज्ञान तास्या करने वाला तामली तापत ने आदर नहीं किया अच्छा नहीं जाना. परंतु मौन रहा ॥३४॥ पुनः वे असुर कुमार देवताओंने तीन वक्त पदक्षिणा कर दो तीन बार वैसा ही कहा कि अहो देवानुप्रिय हम इस बलि चंचा. राज्यघानी में रहने वाले देव हैं यावत् तुम वहाँ उत्पन्न होने का नियाना करो परंतु तामली तापप्त मौन खडा रहा. ॥ ३५ ॥
३१ अनुवादक- लब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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