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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4- पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
दे० देवद्युति दे देवानुभाव दि० दीव्य व० बत्तीस प्रकार के न० नाटकविधि उ० बताकर ता० तामाले ( वा० बालतपस्वी को ति० तीनवार आदान पर प्रदक्षिणा क० करे ० वांदे न० नमस्कार कर ए० ऐसा व० बोले दे० देवानुप्रिय अ हम ब० बलिनंवा रा० राज्यधानी व० रहने वाले ब० बहुत अ० असुर { कुमार दे० देव दे० देवी बं० वंदन करते हैं न० नमस्कार करते हैं प० पर्युपासना करते हैं ॥ ३३ ॥ त० तब से वह ता० तामलि बालतपस्वी ते उन ब० बलिचंचा रा० राज्यधानी में व० रहने वाले ब० बलिचंचा रायहाणी अणिंदा अपुरोहिया, अम्हेणं देवाणुप्पिया ! इंदाहीणा, इंदाहिट्ठिया, इंदाहीणकज्जातं तुम्मेणं देवःणुप्पिया बलिचंचा रायहाणिं आढह, परियाह, सुमरह, अटुंबंधह, निहाणं पकरेह; ठिइप्पकप्पं पकरेह; तरणं तुज्झे कालमासे कालं किच्चा बलिचंचा रायहाणीए उववाजिस्सह, तरणं तुब्भे अम्हं इंदा भविस्सइ तण तुम् अम्हे हिंसद्धिं दिव्वाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहरिस्सह ॥ ३३ ॥ तएणं से ता{ वाले हैं. इसालेये अहो देवानुप्रिय ! तुम बलिवंचा राज्यधानी का आदर करो, अच्छी जानो, उस का मन में स्मरण करो, वहां उत्पन्न होने का निदान ( नियाणा ) करो और वहां रहने का संकल्प करो. इन से तुम यहां से काल के अवसर में काल कर के बलिचंचा राज्यधानी में उत्पन्न होवोगे और हमारी साथ दीव्य भोगोपभोग भोगते हुये विचरोगे ||३३|| इस तरह बलिचंचा राज्यधानी के रहने वाले बहुत अमुर
तीसरा शतकका पहिला उद्देशा
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