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सत्र
शब्दार्थ निपुनगति सी सिंहगति सि० शीघ्रगति से दि० दीव्यगति से उ० उद्धृत दे. देवगति से ति तिळ
अ. असंख्यात दी. द्वीप स. समुद्र म. मध्य में जे. जहां भा. भरत क्षेत्र जे० जहाँ ना ताम्रलिप्ती न० नगरी जे. जहां ता० तामलि मो० मौर्यपुत्र ते. तहां उ. आकर ता० तामाल बा, वालतपस्वी की उ० उपर स० सबदिशा में स. प्रतिदिशा में ठि० रहकर दि० दीव्य दे. देवऋद्धि
जेणेव तामली मोरियपुत्ते तेणेव उवागच्छति, उवागच्छंतित्ता तामालस्स बालतवसिस्स उप्पि सपक्खि सपडिदिसिं ठिच्चा, दिव्वं देविढेि, दिव्वं देवजुत्ति, दिव्वं देवाणुभावं, दिव्वं बत्तीसइविहं नट्टविहिं उवदंसंति, उवदंसतित्ता, तामाल बालतवस्सि तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करंति वंदति नमसंति, नमसंतित्ता, एवं वयासी एवं खलु देवाप्पुप्पिया ? अम्हे बलिचंचारायहाणिवत्थव्वया, बहवे असुर कुमारा देवाय
देवीओय देवाणुप्पिया ! वंदामो नमसामो जाव पज्जुवासामो । अम्हाणं देवाणुप्पिया ! भावार्थ महानुभाव और देवता के बत्तीस प्रकार के नाटक बतलाये. बतलाकर तामली तापस को तीन वार प्रद.
क्षिणा करके वंदना नमस्कार किया. और ऐसा बोले कि अहो देवानुपिय! हम बलिचंचा राज्यधानी में रहनेवाले देव व देवियों तुम को वांदते हैं यावत् तुम्हारी पर्युपासना करते हैं. अहो देवानुपिय हमारी बलिचंचा राज्यधानी इन्द्र.रहित व पुरोहित रहित है. और हम इन्द्राधीन, इन्द्राधिष्टित, व इन्द्राधीन कार्य करने
10अनुवादक-बालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी
*प्रकाशक-राजावहादुर लाला मुखदव सहायजी जालाप्रसादजी *
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