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शब्दार्थ
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488 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र 88
रा. राज्यधानी में ठिस्थिति ५० संकल्प प० करानेको ॥३३॥ अ. अन्योन्य की अं० पास ए. यह अर्थ प० मूनकर व० बलिचंचा रा० राज्यधानी की म० मध्य से नि० निकले जे. जहां रु० रुचकेन्द्र उ००० उत्पानपर्वत ते. तहां उ० आये वे० वैक्रेय स० समुद्घात स० नीकाले जा. यावत् उ० उत्तर वैक्रेय रू० रूप वि० विकुणाकर ता. उस उ० उत्कृष्ट तु वरासे चं. रौद्रगति से ज० अन्यगति से छे ० ०is ठिइप्पकप्पं पकरावेत्तए त्तिकटु,॥३३॥अण्णमण्णस्स अंतिए एयमटुं पडिसुणंति पडिसुणंतित्ता बलिचंचाए रायहाणीएमझ मज्झेणं निग्गच्छंति २त्ताजणेव रुयइंद उप्पायपव्वए तेणेव उवागच्छंति, वेउन्विय समुग्याएणं समोहणंति २त्ता जाव उत्तर वेउव्वियाई रूवाइं विकुव्वंति, विकुव्वांतत्ता ताए उक्किट्ठाए तुरियाए, चवलाए, चंडाए, जयणाए, छेयाए, सीहाए, सिग्घाए, दिव्वाए, उडुयाए, देवगईए, तिरियं असंखेज्जाणं दीवसमुदाणं म
झं मझेणं जेणेव जंबूद्दीवे दीवे, जेणेव भारहेवासे, जेणेव तामलित्तीए णगरीए, चपलतावाली, क्रोध में आकर चले ऐभी रौद्र, अन्य गति का जय करे वैसी, निपुणतावाली, शीघ्रतावाली, दीव्य, और वस्त्रादिक के उठूनपने की देवगति से तिर्छा असंख्यात द्वीप समुद्र की मध्य मेंY होकर जम्बद्वीप के भरत क्षेत्र में ताम्रलिप्ती नापक नगरी में तामली मौर्य पुत्र की पास आये. वहां आकर तामली तपस्सी की उपर, व दिशी विदिशी में खड़े रहकर मनोज्ञ दीव्य देव ऋद्धि, मनोज्ञकान्ति, दीव्य
तीसरा शतक का पहिला उद्देशा !
भावार्थ