________________
शब्दार्थ
* पा० पानी के प० प्रत्याख्यान कर पा पादोपगमन से नि० रहा ॥३१॥ ते. उस काल ते. उस समय में बबलीचंचा रा०राज्यधानि अइन्द्र रहित अ० पुरोहित रहित होथी ॥३३॥त० तव ते उस बबली चंचाई रा० राज्यधानि में व० रहने वाले ब० बहुत अ० असुर कुमार दे० देव दे० देवी ता• तामली बा• वाल तपस्वी को ओ० अवधिज्ञान से आ० देखकर अ० अन्योन्य स० तेडाकर एक ऐसा व. बोले ए.ई ऐसे दे देवानुप्रिय ब० बलिचंचा रा० राज्यधानी अ• इन्द्रविना की अ० पुरोहित विना की अ० अहो है।
जाव भत्तपाण पडियाइक्खिए, पाओवगमणं निवण्णे ॥ ३१ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं बलिचंचारायहाणी आणिंदा अपुरोहिया याविहोत्था ।। ३२ ॥ तएणं तेबलिचंचारायहाणिवत्थव्वया बहवे असुरकुमारा देवाय देवीओय तामलिं बालतवरिंस ओ
हिणा आहोयंति आहोयतित्ता अण्णमण्णं सदावेति, सद्दावेतित्ता, एवं वयासी एवं भावार्यन्तमें रखकर आहार पानीका प्रत्याख्यान कर काल को नहीं वांच्छता हुवा पादोपगमन संथारा ग्रहण किया।
॥३१॥ उस काल उस समय में बलीचंचा राज्यव्यानी में इन्द्र काल कर जाने से इन्द्र रहित बनी हुई है थी ॥ ३२ ॥ तब बलीचंचा राज्यधानी में रहनेवाले बहुत देव व देवियोंने तामली तापप्स को संलेखना।
ते हुवे देखे. और परस्पर बोलने लगे कि अहो देवानापिय !बलीचंचा राज्यधानी इन्द्र रहित, पुरोहित रहित है. और हम इन्द्राधीन, इन्द्राधिष्टित व इन्द्र के आधीन कार्य करनेवाले हैं. और अहो देवानुप्रिय ! ता
48 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति ( भगवती ) सूत्र 438
882280तीसरा शतकका पहिला उद्देशा 80%82
कर