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शकर
१॥ २६ ॥ २७ ॥ से वह के० कैसे भ० भगवन् ए. ऐसा यु. कहा जात है पा०प्रणाम प० प्रवा मो०
गौतम पा० प्रणाम प्रवर्ध्या से प० दीक्षित हुवा जं. जिसको ज. जहां पा० देखे तं० उनको ई० इन्द्र खं० कार्तिकेय रु० महादेव ति० व्यंतर वे० वैश्रमण अ. चंडिका को कोटिक रा. राजा जा. यावत् स. सार्थवाह का काक सा० श्वान पा० चंडाल उ ऊंच को पा०देखे उ ऊंचको १० प्रणामकरे नी० नीच को पा० देखे नी नीचको प० प्रणामकरे जिसको ज. जैसे पा० देखे उ. उसको त.
पक्खालेइत्ता तओ पच्छा आहारं आहारेइ ॥ २७ ॥. से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ
पाणामाए पव्वजा? गोयमा ! पाणामाएणं पव्वज्जाए पव्वइए समाणे जं जत्थ पासइ तं है इंदवा, खंदवा, रुदेवा, सिवा, वेसमणवा, अजंवा, कोटकिरियंवा, रायंवा जाव है सत्थवाहंवा; काकंवा, साणवा, पाणंवा, उच्च पासइ, उच्चं पणामं करेइ, नीयं पासइ
नीयं पणामं करेइ, जं जहा पासइ तस्स तहा पणामं करेइ. से तेण?णं जाव भावार्थ पानी से धोकर उस का आहार करते हैं ॥ २७ ॥ अहो गवन् ! तामली तापसकी प्रणाम प्रचा
कैसे कही? अहो गौतम ! प्रणाम प्रवा अंगीकार करनेवाला इन्द्र, स्कंध, रुद्र, शिव, वैश्रमण, चंडिका, कोटिकादि, राजा को, शेठ को, सेनापति, सार्थवाह, काकपक्षी, धान, चांडाल को, ऊंचको देखकर ऊंचको प्रणाम करे, नीचको देखकर नीचको प्रणाम करे जिसे जहां देखे उसे वहां प्रणाम करे. इस से अहो गौतम !
48 पंचांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
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2428 तीसरा शतक का पहिला उद्देशा 988