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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
कर अ० अल्प म० मोघे अ० अलंकृतकर स० शरीर भो० भोजन वक्त में भो० भोजन का मंडप में) शुभासन पे ग० बैठे त० तब मि० मित्र णा० ज्ञाति नि० स्वजन सं० संबंधि प० परिवार स० ता कियसरीरे, भोयणनेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए. तएणं मित्तनाडु नियम सयण संबंधि परियणेणं सद्धिं तं विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं आसाएमाणे बीसाएमाणे परिसाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ ॥ जेमिय भुतत्तरागए त्रियणं समाणे आयंते चोक्खे परमसुइभए तं मित्तं जाव परियणं विउलेणं. वत्थगंधमल्लालंकारेणय 'सक्कारेइ, सक्कारेइत्ता तस्सेवमित्तनाई जाब परियणस्स पुरओ जेट्ठपुत्तं कुटुंबे ठावेइ २ ततं मित्तनाई जा परियणं जेट्ठपुत्तं च आपुच्छइ २त्ता मुंडे भक्त्तिा, पाणामाए अल्पभार व बहुत मूल्यवाले आभूषणों से शरीर अलंकृत किया, भोजन तैयार होने पर स्वजन मित्रजन की साथ भोजन मंडप में प्रवेश कर शुमसिंहासनपे बैठकर मित्रादि सब की साथ विपुल निपजाये हुए अशनादि स्वयं आस्वाद व अन्य को परुसते विचर रहे हैं। इस प्रकार जीमकर उपर जो कुच्छ भोगवना था उसे भोगकर पानी के कुल्ले कर बुद्ध बने. फोर बहुत वस्त्र गंध व मालाअलंकार से आये हुए स्वजनादि का { सरकार सम्मान किया और सब स्वजन मित्र ज्ञाति प्रमुख की सन्मुख ज्येष्ट पुत्र को कुटुम्ब में स्थापित {किया. फोर ज्ञाति स्वजन व ज्येष्ट पुत्र को पृडकर मुंड बनकर प्रणाम नाम की प्रवय अंगीकार क
ॐ पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र
तीसरा शतकका पहिला उद्देशा 48483
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