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शब्दाथे
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिमी
लिये अ• विचरना सु० शुद्ध ओदन ५० ग्रहणकर ति तीन स० सात वक्त उ० पानी से प० बोकर का पीछे पा० आहार करने को शि. ऐसा क० करके सं० विचार करे ॥ २५ ॥ सं० विचारकर क० काला पा. प्रभात में जा. यावत् ज० सूर्य उदित होते स. स्वयं दा. काष्ट का प. पत्रिका कसके कि विपुल अ. अशन पा० पान खा. खादिम सा. स्वादिम उ० नीपजाकर पीछे हा० स्नान किया क० पीठोलगाइ क० कोगले किये पा. तीलमसादि किये मु. शुद्ध मं० मांगलीक १० वख ५० पहन
सुद्धोदणं पडिग्गहेत्ता, तं तिसत्तक्खुत्तो उदएणं पक्खालेत्ता, तओपच्छा आहारं आहारित्तए त्तिकटु, एवं संपेहइ ॥ २५ ॥ संपेहेइत्ता कल्लं पाउप्पाभायाए जाव जलंते सयमेव दारुमयं पडिग्गहयं कारेइ कारेइत्ता विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडाबेइ, उवक्खडावेइत्ता, तओ पच्छा व्हाएं कयबलिकम्मे, कयकोउयमंगल
पायच्छित्ते, सुद्धप्पावेसाई मंगलाई वत्थाई पवर परिहिए, अप्पमहग्याभरणालं-. घृत शाकादि रहित शुद्ध ओदन ग्रहण करके फोर उसे इक्कीस वक्त पानी से धोकर उस का आहार करना मुझे श्रेय है ॥ २५ ॥ इस प्रकार का विचार करके सूर्योदय होते काष्टमय पात्र बनवाया और अशन, पान, खादिम व स्वादिम ऐसे चारों आहार निपजाये. पीछे लान किया, पीठी प्रमुख का विलेपन किया, पानी के कोगले किये, तिलमहादि शुभ चिन्द किये और शुद्ध मंगलिक वख पहिने.
समाजाबहादुर लाला मुखदेक्सहायजी ज्यानन्तानमा
भावार्थ