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शब्दार्थ
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
जा. यावत् ज०मूर्य उदित होते स०स्वयं दा०काष्ट के ५०पात्र क०करके वि० विपुल अ० अशन पा पान खा. खादिम सा० स्वादिम उ० नीपजाकर मि० मित्र णा ज्ञाति नि० स्वजन सं० संवधि प०परिवार को आ० आमंत्रणकर तै.. उन को अ० अशन पा० पान खा. खाइम सा० स्वादिम व० वस्त्र गं० गंध अ अलंकार से सं० सत्कारकर स. सन्मानदेकर तं• उन की पु० आगे जे. ज्येष्ठ पुत्र को कु० कुटुम्ब ठा० स्थापकर तं. उन को आ० पूछकर स० स्वयं दा० काष्ट के ५० पात्र ग० ग्रहणकर मुं• मुंड होकर
पाउप्पभायाए रयणीए जाव जलंते सयमेव दारुमयं पडिग्गहं करेत्ता, विउलं असणं, पाणं, खाइम, साइमं उबक्खडावेत्ता, मित्त,णाइ, नियग, सयण, संबंधि, परियणं आमंतेत्ता, तं मित्त, णाइ. नियग, सयण,संबंधि, परियणं विउलेणं असण पाणखाइमं साइमेणं वत्थगंध मल्लालंकारेणय सकारत्ता, सम्माणेत्ता तस्सेव मित्तणाइ नियग संबंधि परियण
स्स पुरओ जेट्टपुत्तं कुटुंये ठावित्ता, तं मित्त,नाइ, नियग, संबंधि, परिषण, जेट्टपुत्तंच कलप्रभात में सूर्य का उदय होते स्वयं काष्टमय एक पात्र बनाकर, बहुत अशन, पान, खादिम स्वादिम बनाकर मित्र, ज्ञाति, सगे संबंधी को आमंत्रणा करके और उन मित्रादि वर्ग को अशन, पान, स्वादिम, स्वादिम वस्त्र, गंध, माला अलंकार वगैरह वस्तु से सत्कार करके उनकी सन्मुख ज्येष्ट पुत्र को कुटुम्ब में स्थाप कर और उन मित्र ज्ञाति स्वजन तथा ज्येष्ठ पुत्र को पूछकर पीछे स्वयमेव काष्ट मय पात्र को ग्रहग कर मुंड बनकर प्रणाम करने योग्य नाम की भवर्जा अंगीकार करना
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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