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________________ *380 शब्दाबसे प वृद्धिपाता हूं वि०विपुल थ० धन क• कनक र० रन म० मणि मो• मौक्तिक सं० शंख सि. शिला प० प्रयाल र० रक्त र० रत्न सं० विद्यमान सा• अच्छा सा द्रव्य से अ० अतीव अ० वृद्धिपाता हूँ | जा. जहाँलग मे० मुझे मि० मित्र ना० ज्ञाति नि० स्वनाति सं० संबंधि प० परिवार आ० आदर करते। हैं १० अच्छा जाने स. सत्कारकरे स० सन्मानदेवे क० कल्याण कारी मं. मांगलीक दे० देव वि० विनय से चे० ज्ञानवन्त ५० पूजते हैं ता० वहांलग मे० मुझ से श्रेय क० काल पा. प्रभात में र. रजनी रयण, माण, मोत्तिय संख, सिलप्पवाल, रत्त, रयण, संतसारसावएजेणं. अईव अईव आभिवड्डामि. तं किणं अह पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं जाव कडाणं कम्माणं । एगंत सोक्खयं उवेहमाणे विहरामि तं जाव अहं हिरण्णेणं वढ्ढामि, जाव अईव २ आभिवड्यामि, जावं चमे मित्तनाइ नियग संबंधि परियणो आढाइ परियाणाइ, सक्कारेइ सम्माणेइ, कल्लाणं, मंगलं, देवयं, निणएणं, चेइयं पज्जुवासेइ, ताव तामे सेयं कल्लं । भावार्थ वैसे ही पुष पशु वगैरह से मैं बढरहा हूं. और विपुल धन, कनक, रन्न, मणि, पौक्तिक, शंख, शिला, वगैरह श्रेष्ठ द्रव्य मुझे बहुत २ बहरहा है. इस से मैं पूर्व के संचित किये हुवे शुभ कर्मों को एकान्त क्षय । करता हुषा विचरता हूं. अब जहांलग मुझे मेरे मित्र, ज्ञातिः संबंधि परिजन आदर देते हैं, स्वामी तरीके पानते हैं, सतार करते हैं, सन्मान देते हैं, कल्याणकारी, मांगलीक, देवता समान पूजा करते हैं वहांलग तीसरा शतक का पहिला उद्देशा पंचांग विवाह -
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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