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________________ शब्दार्थ सूत्र भावार्थ + अनुवादक- बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी * प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * से अ० अपराजित हो० था० ॥ २४ ॥ ० तब तक उस मो० मौर्यपुत्र ताः तामलि गा० गाथापति अ० (कोइ वक्त पु० पुर्वरात्रि अ० अपरात्रि का वक्त में कु० कुटुंब जा० चिंता जा० करते ए० इसरूप अ | आत्मचितवन जा० यावत् स० उत्पन्न हुवा अ० है पु० पूर्व के पो० पुराणा सु० सुचरितरूप सु० { अच्छा पराक्रम रूप सु० शुभ क० कल्याणरूप क० किये के कर्म के क० कल्याण कारी फ० फल वि० विशेष जे० जिम से अ० मैं हि० चांदी से सु० सुवर्ण से ध० धन से घ० धान्य से पु० पुत्र से प० पशु पुते गाहावई होत्था, अड्डे दित्ते जाव बहुजणस्स अपरिभूए यावि ' होत्या ॥ २४ ॥ तपूर्ण तरस मोरियपुत्तस्स तामलिस्स गाहावइस्स अण्णया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि, कुटुंबजागरियं जागरमाणस्स इमेएयारूवे अन्भतिथए जाव समुप्पण्णे, आत्थ तामे पुरा पोराणाणं सुचिण्णाणं सुप्परिक्कंताणं सुभाणं, कल्लाणाणं, कडा कम्माणं, कल्लाणफलवित्तिविसेसो, जेणाहं हिरण्णेणं वड्डामि, सुवण्णेणं वड्डामि, धणेणं वड्डामि, धण्णेणं वद्दामि पुत्तेहिंच, पसूचि वट्ठामि विउल, धण, कणग था ॥ २४ ॥ एकदा तामली गाथापति को मध्यरात्रि में कुटुम्ब जागरणा जागते हुवे ऐसा अध्यवमाय हुवा कि मैंने गतकाल में पूर्व जन्म में दानादि सुकृत किये हैं, तपश्चराणादि किये हैं, इस से ऐसे शुभ { कल्याणकारी कर्म के अच्छे फल मुझे हो रहे हैं. और इस से मेरे हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य बढ रहे हैं?, ४२८
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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