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शब्दार्थ कमा० माहण की अंपास ए. एक आ० आर्य ध धर्म का मु० सुवचन सो० सुनकर नि. अवधारकर
ज. जिससे ई० ईशान दे० देवेन्द्र दे देवराजा की सा वह दि० दाव्य दे देवऋद्धि जा० यावत् अ०० सन्मुख हुइ ॥ २३ ॥ गो० गौतम ते. उस समय में इ० इस जं. जंबृद्वीप में भा. भरत क्षेत्र में ताx ताम्रलिप्ती न० नगरी हो० थी व० वर्णन युक्त त० तहां ना. ताम्रलिप्ती न० नगरी में ता० तामली ना नाम का मो. मौर्यपुत्र मा० गाथापति हो था अ० ऋद्धिवंत दि. दिप्त जा. यावत् ब० बहुत मनुष्यों
488 पंचमान विवाह पम्पति (भगवती) सूत्र 428
अंतिए एगमवि आयरियं धम्मियं सुवयणं सोचा, निसम्म जणं ईसाणेणं देविदेणं देवरण्णा सा दिव्वा देविट्ठी जाव अभिसमण्णागया ? ॥ २३ ॥ एवं खलु गोयमा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबूहीवे दीये भारहे वासे तामलित्तीनामं णयरी होत्था, वण्णओ । तत्थणं तामलित्तीए नयरीए तोमलीनाम मोरिय
तीसरा शतक का पहिला उद्देशा 988
भावार्थ
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लेखनादि समाचारी की, अथवा कौनसे तथारूप श्रमण माहण की पास एकान्त आर्य धर्म श्रवण कर अवधारकर ऐसी ईशानेन्द्र की दीव्य ऋद्धि द्युति वगैरह प्राप्त की?॥ २३ ॥ अहो गौतम ! उस काल है उस समय में जम्बूद्वीप नामक द्वीप के भरत क्षेत्र में ताम्रलिप्ती नामक नगरी थी. उस नगरी में मौर्य पुत्र वामली नामक गाथापति रहता था. वह गाथापति बहुत ऋद्धिवंत, दीप्त यावतू अन्य जनों में अपराभूत