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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
भगवन्त म० महावीर को बं० वंदनाकर व० बोले अ० अहो मुं० भगवन ई० ईशान दे० देवेन्द्र देव देवराजा म० महर्द्धिक ई० ईशान की मं० भगवन् सा० वह दि० दीव्य दे देवऋद्धि क० कहां ग० गइ क० कां अ० प्रवेश हुइ गो० गौतम स० शरीर में ग० गइ से० वह के० कैसे मं० भगवन् ए० ऐसा ० कहा जाता है स० शरीर में ग० गइ से० वह ज० जैसे कूः कूटागार सा० शाला सि० होवे दु० दोनो बाजु लि० लिप्त गुरु गुप्त गु० गुप्तद्वार णि० वायुविना की नि० वायुरहित गंभीर ती० उस कु० त्ति भगवं गोयमे समणं, भगवं महावीरं वंदइ नमसइ २ ता एवं बयासी अहोणं भंते ! ईसाणे देविंदे देवराया महिठ्ठीए, ईसाणस्सणं भंते ! सा दिव्या देवड्डी कहिं गते कहिं अणुपविट्टे ? गोयमा ! सरीरंगए ॥ से केणट्टेणं ते! एवं वृच्चइ सरीरंगए ? गोयमा ! से जहा नामए कूडागार साला सिया, दुहओ लित्ता, गुत्ता, गुत्तदुबारा णित्राया, बना नमस्कार कर ऐसा पूछा कि अहो भगवन् ! ईशानेन्द्र देवताने जो ऐसी महा ऋद्धि बताई थी. वह ऋद्धि पीछी कहां गई ? असे गौतम ! शरीर में गइ. अहो भगवन् ! किम तरह से यह ऋद्धि शरीर में
गई. 2. अहो भगवन् ! जैसे कोई कूटागारशाला होवे इस के दोनों पास लीपा हुवा होवे और उम्र के द्वार भी शुद्ध होते. वायु का संचार इस में नहीं हो सकता होवे. ऐसी कूटागार शाला की बाहिर बहुत जन25 समुदाय एकत्रित हुवा होके और मेघप्रमुख होता देखकर सब मनुष्यों उस कूथशाला में चले जाने से
443 पंचमांग विवाह प्रप्ति (भगवती सूत्र
+++ तीसरा शतकका पहिला उद्देशा -4080
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