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अ. अधिपति ज. रजरहित क श्रेष्ट व वस्त्र प. पहीनने वाले आ० रहाई मायाला २० मुकुट न. नवा हे सुवर्ण चा० सुंदर चि. चिस चं० चंचल कुं. कुंडल वि० अंकित होने गं. गंडस्थल जा. यावत् द. दशदिशा में उ० उद्योत करते प. प्रकाश करते ई० ईशान देवलोक ई. ईशान व. चर्दिशक वि. विमान च. जहां रायमसेणी में जा. यावत् दी. दिव्य दे० देव ऋद्धि जा. यावत् जा. जिस 11
दिशिने पा० आये ता. उसदिशि में प० गये ॥ २१ ॥ भ० भगवान् गो गौसम स. श्रमण लोगाहिवई, अट्ठावीस विमाण वास सयसहस्साहिबई, अरयंवरवत्यधरे, आलईय माल मउडे नवहेम चार चित्तचल चंचल कुंडल विलिाहिजमाणगडे आव दसदिसाओ उज्जोमाणे पभासेमाणे, ईसाणेकप्पे, ईसाणवडिसए विमाणे जहेव रायप्पसेणइजे
जाव दिव्वं विढेि जाव आमेव दिप्ति पाउन्भूए तामेवदिसि पडिगए॥ २१ ॥ भंते ! भावाथे
यथायोग्य स्थान पर माला, मुकुवाले, नविन सुवर्ण के मनोहर व चित्त समान चंचलकुंडल की रेसायुक्त
गंडस्थल वाले यावत् दशोदिशि में उद्योत करनेवाले ईशानेन्द्र ईशान देवलोक के ईशान वार्डिशक नामक विमा Eन में रहतें हुवे वगैरह सब अधिकार रायमसेणि मूत्र में जैसे सूर्याभ देवता का कहा, वैसे ही यहां कहना.
ऐमी सव ऋदि सहित भगवंत को वंदना नमस्कार करने को आये. मनोज दीव्य देव ऋद्धि, कान्ति,प्रभाव विगैरह गीतमादि साधुओं को बताकर पीछे गये ॥ २१ ॥ उस समय में गौतम स्वामीने श्री भगवन्त को
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी जालाप्रसादनी -