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शब्दार्थ 4 अपदेशलोक . विशेष:अ० आठ ए ऐसे लं. लंतक ण. विशेष सा. अधिक अ० आठ
के. संपूर्ण म० महाशुक्र सो० सोलह स. सहस्रार में सा• अधिक सो• सोलह ए० ऐसे पा.
सणंकुमाराओ आरद्ध उवरिल्ला, लोगषाला सव्वेवि असंखेजे दीवसमुद्दे विकुव्वति । एवं माहिदेवि, णवर साइरेगे चत्तारि केवलकप्पे जंबूहीवे दीवे एवं बंभलोएवि,
णवरं अट्ठकप्पे ॥ एवं लंतएवि, णवरं साइरेगे अट्ठ केवलकप्पे महासुक्के सोलस व अन्यदेव हैं. + ऐसेही इनके सामानिक देवे, प्रायशिक, लोकपाल व अग्रमाहवियों असंख्यात द्वीप समुद्री वैक्रय रूप से भरने को समर्थ हैं. माहेन्द्र चार जम्बूद्वीप से कुछ विशेष वैफ्रेयरूप से भरने को समर्थ है, ! ब्रह्मेन्द्र आठ जम्बूद्वीप भरने को समर्थ है, लांतक साधिक आठ जम्बूद्वीप भरने को समर्थ है, महाशुक्र सोलह जम्बूदीप भरने को समर्थ है, सहस्त्रारेन्द्र साधिक सोलह जम्बूद्वीप मरने हैं. आणत प्राणत पत्तीस जम्बूद्वीप और आरण अच्युत साविक बत्तीस जम्पद्वीप भरने को समर्थ है. अन्य सब अधिकार पहिले जैसा है परंतु प्रथक २ ऋद्धि बताते हैं. सौधर्म देवलोक में बत्तीस लाख, ईशान देवलोक में अठाहै + सनत्कुमार नामक तीसरे देवलोकसे आगे देविऑकि उत्पत्ति नही है. तथापि प्रथम देवलोककी अपरि
ही देवी एकसमयाधिक पल्यापमं से दश पल्योपमकी स्थिति वाली बारह वे देवलोक के देवोंको। 14 उपयोग में भाती हैं इससे यहां उसका प्रतिषेध नहीं किया है.
पंचाम विकाह पण्णत्ति ( ममवती) सूत्र
तीसरा शतक का पहिला उद्देशा
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