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शब्दार्थ 4 ता. पायनिक लो० लोकपाल अ अनमहिषी जायावत् वि०विकुर्वणा की ॥१८॥ ए०ऐसेस सनत्कुमार
• विशेष च० चार के संपूर्ण जं जंबूदीप अ. अथवा ति. तिर्छा अ० असंख्यात ए. ऐसे सा० सामानिक ता. नाशिक लो. लोकपाल अंक अग्रमहिपी अ. असंख्यात दी.द्वीप समुद्र स० सर्व वि.विकुर्वे स० सनत्कुपार से उ० उपर के लो. लोकपाल तसर्व अ. असंख्यात दी. द्वीप समुद्र वि० विकुर्वे एक ऐसे मा० माहेन्द्र ण विशेष सा० अधिक च० चार के. संपूर्ण जं. जंबुदीप बं०
तंचेव ॥ १७ ॥ एवं सामाणिय तावत्तीसग लोगपाल. अगमहिसीणं जाव एसणं गोयमा ! ईसाणस्स देविंदस्स देवरणो, एगमेगाए अग्गमहिसीए देवीए अयमेयारूवे
विसए बिसयमेत्ते बुइए । णो चेवणं संपत्तीए विकुब्धिमुना ।। १.८॥ एवं सणकुमारेवि र णवरं चत्तारि केवल कप्पे जंबद्दीवे दीवे अदुत्तरं चणं, तिरिय मसंखेजे ॥ एवं सामाभावार्थ णिय, तावत्तीसग लोगपाल, अग्गमहिसणं, असंखेजे दी। समुद्दे संब्वे विकुव्वंति
बायत्रिंशक, लोकपाल, व अग्रवाहिपियों का जानना. और वैकेय का विषय भी उतना ही जानना. परंतु इतनी संपत्ति नहीं है ॥ १८ ॥ जैसे ईशानेन्द्र का कहा वैसे ही सनत्कुमारेन्द्र का जानना. विशेष इतना कि सनत्कुमार चार जम्बूद्वीप प्रमाण वैक्रेय रूप से भरने को समर्थ है.' असंख्यात द्वीप समुद्र भरने की शक्ति है परंतु सम्पत्ति नहीं है. इस में बारह लाख रिमान, बहत्तर हजार सामानिक, चौमुनें आत्मरक्षक,
49 अनुवादक-बालबाह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
punarenindianarmadammimmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालामसादमी