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42 अनुवादक-बालब्रह्मचरािमुनि श्री अमोलक ऋषिजी+
व० बोले अ० अहो दे देवानुप्रिय दिदीव्य दे० देवऋद्धि दे० देवाति दि०दीव्य देवानुभाव ललब्ध ५०१ प्राप्त अ० सन्मुख हुवे ।। १४ ॥ ज० यदि भं० भगवन् ती तिष्यकदेव मा महर्द्धिक जा० यावत् म० १. ढीए जाव एवइयं चणं पभू विकुवित्तए, से जहानामए जुबइ जुवाणे हत्थे गेण्हेजा,
जहेव सक्कस्स तहेव जाव एसणं गोयमा ! तीसयरस देवस्स अयमेयारूवे. है विसए विसयमेत्ते वुच्चइ, नो चेवणं संपत्तीए विकुर्दिवसुवा ३ ॥ १४ ॥ जइणं
भंते तीसए देवे महिठ्ठीए जाव एवइयंचणं पभ विकवित्तए । सकरसणं भंते ! दोविंदस्स देवरण्णो अवसेसा सामाणिया देवा के महिढीया तहेव सब्बं जाव एसणं
गोयमा ! सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एगमेगस्स सामाणियस्त देवस्स: इमेयारूवे. रक्षक देव, और बहुत अन्य देवता का स्वामी है और वैज्रय करने की शक्ति शक्रेन्द्र जितनी है. यह मात्र विषय परंतु इतनी संपत्ति नहीं है ॥ १४ ॥ अहो भगवन् ! जब तिष्णक नामक देवता इतना मह- . इर्दिक यावत् इतने वैकेय रूपं करने को शक्तित्रत है. तब अन्य सामानिक देव कितने महर्दिक यावत् . कितने वैक्रेय रूप करने को समर्थ हैं ? अहो गौतम ! शकेन्द्र के एक २ सामानिक -देव तिष्यक देव जितनी ऋद्धिवाले हैं. और वैकेय का विषय तीष्यक देव जितना है परंतु इतनी संपत्ति नहीं है. इसने रूप अतीत काल में किये नहीं, वर्तमान में करते नहीं हैं और आगामिक में करेंगे नहीं. उन के त्रायात्रा
प्रकाशेक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादमी *
भावार्थ
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