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शब्दार्थ * मनःपर्याप्ति त• तब ती. तिष्यकदेव को पं० पांच प्रकार की प०पर्याप्ति के प०पर्याप्तिके भाव को, म गये
हुचे सा० सामानिक प० परिषदा में उ० उत्पन्न हुवे दे० देव क० करतल ५० जोडकर द. दशनखति | शिर्षसे आ० आवर्तन म० मस्तक से अं० अंजली करके ज. जय वि. विजय से व० वधाकर एक ऐसार
दिव्यादेवजुत्ती, दिव्वे देवाणुभावे, लढे पत्ते आभिसमण्णागए जारिसाणं देवाणुप्पि- १ एहिं दिव्वा देविड़ी, देवजुत्ती, दिव्वे देवाणुभावे लद्धे पत्ते आभिसमण्णागए, तारिसियाणं सक्केणं देविदेणं देवरण्णो दिव्वादेविट्ठी जाव आभिसमण्णागया,जारिसिणं सक्केणं देविं देणं देवरण्णो दिव्वादेविढि जाव आभिसमण्णागया, तारीिसियाणं देवाणुप्पिएहिं दिव्वादेविठ्ठी जाव आभिसमण्णागया सेणं भंते तीसए देवे के महितीए आव केवइयं चणं पभू विकुम्वित्तए ? गोयमा ! महिलाए जाव महाणुभागे, सणं तत्य सयस्स विमाणस्स चउण्हं सामाणिय साहस्सीणं चउण्हं. अगमहिसीणं, तिहं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिबईणं, सोलसण्हं आयरक्खदेव
साहस्सीणं, अण्णसिंच बहूणं वेमाणियाणं देवाणय जाव विहरई, ए महि वगैरह है वैसे ही आप को है. अहो भगवन् ! ऐसा तीसक नामक देवता कितनी ऋद्धिवाला यानत। कितने रूप वैकेय करने को समर्थ है! अहो गौतम! वह अपने विमान चार हजार सामानिक देवता, चार अग्रमाहषियों, तीन परिषदा, सात अनिक, सात अनिक के अधिपति, सोलह हजार मात्म-
पंचमान विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र-488+
mmammar
तीसरा शतक का पहिला उद्देशा
भावाथ