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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ |
छट भक्त से अ० अंतर रहित त तप कर्म से अ० आत्मा को भा० भावने हुवे व बहुत १० प्रतिपूर्ण अ आठवर्ष सा० दीक्षा पर्याय पा० पालकर मा० मासकी सं० संलेखना से अ० आत्मा को झू० झूसकर स०साठ भक्त अ० अनशन छे छेदकर आं० आलोच कर १० प्रतिक्रमणकर स० समाधि प्राप्त (का० काल के अवसर में का० काल करके सो० सौधर्म देवलोक में स० अपने वि० विमान में उ० उपपात संक्के देविंदे देवराया ए महिंदीए जाव एवइयं चणं प्रभुविकुव्वित्त एवं खलु देवापुप्पियाणं अंतेवासी तीसएनामं अणगारे पगइभद्दए जात्र विणीए छटुं छट्टेणं आणि क्खित्तेणं तवो कम्मेणं अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई अट्ठ संवच्छराई सामपरियागं पाउणत्ता, मासियाए संलेहणाए अपाणं झूसित्ता, सठिभत्ताई अणसणाए छेदित्ताई अणसणाए छेदित्ता, आलोइय पडिते समाहिपत्ते कालमासे कापूर्ण आठ वर्ष तक साधु की पर्याय पालकर, एक मास की संलेखना से आत्मा को झोंस कर, साठ भक्त {अनशन करके, आलोचना प्रतिक्रमण करके समाधि प्राप्त हुए; और काल के अवसर में काल करके सौ{ धर्म देवलोक में तिष्यक नामक विमान में उपपात सभा की देवशैय्या में देव दृष्य वस्त्र नीचे अंगुल के असंख्यातत्रे भाग प्रमाण की अवगाहना से शक्रेन्द्र देवेन्द्र के सामानिक देवतापने उत्पन्न हुए; वहां उत्पन्न { होकर आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति; श्वासोश्वास पर्याप्ति व भाषा मन पर्याप्ति ऐसी पांच
43+3 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ते ( भगवती ) सूत्र
49 तीसरा शतकका पहिला उद्देशा
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