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________________ शब्दार्थ दक्षिण का स. सर्व अ० अग्रिभूति पु० पूछे उ० उत्तर का स• सर्व वा० वायुभूति पु० पूछे ॥१२ ॥ मं० 189भगवन् ति० ऐसे भ० भगवन्त भो० गौतम दो० दूसरा अ० आग्निभूति अ० अनगार स. श्रमण भ०/ भगवन्त को वंदना कर न. नमस्कारकर ए. ऐसे व० बोले ज. यदि भं. भगवन् जो. ज्योतिषी राजा म० महर्दिक जायावत् प० समर्थ वि० विकुणा करने को सशक्रेन्द्र भ० भगवन् दे० देवेन्द्र दे० देव राजा के.कितना ममहर्दिक जा. यावत् के० कितना प. समर्थ वि० विकर्वणा करने को पुच्छइ, उत्तरिल्ले सन्वे वायुभई पुच्छइ ॥१२॥ भंतेत्ति भगवं गोयमे दोच्चे आग्गिभई अणगारे समणं भगवं वंदइ नमसइ नमसइत्ता, एवं वयासी जइ णं भंते ! जोइसिंदे है जोइसराया ए महिड्डीए जाव एवइयंचणं पभूविउवित्तए सक्केणं भंते ! देविंदे देवराया है के माहिड्डीए जाव केवइयं चणं पभू विकुवित्तए ? गोयमा ! सक्कणं देविंदे देवराया माहिढीए जाव महाणुभागे सेणं बत्तीसाए विमाणावास सय सहस्साणं, चउरासीए अमिभूतिने पूछा है॥१२॥ पुनः अभिभति नामक गणर प्रश्न करते हैं कि अंहो भगवन् : जब ज्योतिषीका इन्द्र इतनी ऋद्धिवाला यावत् इतना वैक्रेप कर सकता है तब शक्रेन्द्र कितनी ऋदिवाला यावतूर कितना वैकेप कर सके ? अहो मौतम ! शक्रेन्द्र को बत्तीस लाख विमान, चौरासी हजार सामानिक किस से चौगुमे आत्मरक्षक, और अन्य भी परिवार कहा है. वैक्रेप करने की शक्ति वगैरह चमरेन्द्र जैसा पंचङ्ग डिववपण्णात्ति ( भगवती ) सूत्र 488+ 488-तीसरा शतकका पहिला उद्देशा +
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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