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________________ - शब्दाथ पजी सूत्र अनुवादक-वालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक कपाल छह अग्रमापी ग परिकार माहन नि: नीन प. पम्पिदा म मा आनक मा मान अनिक के अधिपति च चौवीस आ आन्नरक्षा दय मा. महम्र . अन्ग जा यावत् वि. विनाते है. ॥ " : पसे जा. यावत यः स्थनित कुमार ना वाणव्यंतर जो ज्यातिषी णः विशेष दा० देव साहमीण, अन्नसिंच जाव विहरत, एवइयंचणं पभ विउवित्तए । मे जह। नामए जुबइ जवाणे जाव पभ केवलकापं जंबृहीवं दीवं जाव तिरिय संखजे दीव समुहे बहि नाग कुमारीहिं जाव विउविस्मंतिया । सामाणिय तावत्तीस लोगपाल, ____ अग्गमहिसीओय तहेव जहा चमरम्म णवरं संखजे दीवसमुद्दे भाणियव्यं ॥ ११ ॥ ____ एवं जाव थाणियकुमारा ॥ वाणमंतर जोइसियावि, णवरं दाहिणिल्ले सव्वे आग्गिभूई को छोडकर दूसरी वक्त वैक्रेय वनावे और एक लाख योजन का जम्बूदीप यावत ति; संख्याते द्वीप समुद्र को देव देवियों के नविन प बनाकर भर देव. इनके सामानिक, त्रायत्रिंशक, लोकपाल व अग्रमाहषियों का चमरेन्द्र जैसे जानना. इस में संख्यात द्वीप समुद्र पर उतने वैक्रय रूप बनाने की शक्ति है वैमा कहना ।। ११ ॥ ऐसे ही शेष सब भुनपति वाणव्यंतर व ज्योतिषि का जानना. इस में इतना अधिक जानना कि उना दिशाके देवता मंबंधी प्रश्न वायुभूतिने पुछा है और दक्षिण दिशा मंबंधी मव प्रश्न प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ -4
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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