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शब्दार्थ4. वैरोचनेन्द्र ३० वैरोचन :राजा म. महर्दिक प० समर्थ जा० यावत् वि० विकुर्वणा करने को ध० ।
धरणेन्द्र ना. नागकुमारेन्द्र ना० नागकुमार राजा के कितना म० महर्दिक जा. यावत् के० कितना प. समर्थ वि. विकुर्वणा करने को गा गौतम म० महर्दिक जा. यावत् त. तहां चो० चौंवालीस भ.. भुवन स० लाख छ० छ सा० सामानिक स• सहस्र ता० तेत्तीस ता. वायत्रिंशक च• चार लो• लो____यणराया ए महिड्डीए पभ जाव विउव्बित्तए धरणेणं भंते ! नागकुमारिंदे नाग
कुमारराया केमाहड्डीए जाच केवइयं चणं पभ विउवित्तए ? गोयमा ! महिड्डीए जाव
सेणं तत्थ चोयालीसाए भवणवाससयसहस्साणं छण्हं सामाणिय साहस्सीणं, ___ तावत्तीसाए ताबत्तीसगाणं चउपहं लोगपालाणं, छण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं;
तिहं परिसाणं, सत्तण्हं आणियाणं, सत्तण्हं अणीयाहिबईणं, चउवीसाए आयरक्ख: करने को समर्थ है ? अहो गौतम ! धरण नामक नाम कुमारेन्द्र को ४४ लाख भुवन, छ हजार सामानिकदेव इतेत्तीस त्रायशिक, चार लोकपाल, परिवार सहित छ अग्रमाहषियों, तीन परिषदा, सात अनिक, सात अ.} १निक के अधिपति, चौवीस हजार आत्मरक्षक देव और अन्य भी अनेक प्रकार के देवों की ऋद्धि है. और जैसे काम पीडित पुरुष युक्ती का निरंतर हस्त ब्रहण कर रखता है या गाडे की नाभी में पारा रहता है वैसे ही नाम कुमार रत्नादक सार पदलों को ग्रहण कर दैत्रेय बनावे. उस में से बादर पुगसो ।
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र
तीसरा शतक का पहिला उद्देशा
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